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"जे घर झूलावे पारणु,
ते करे जगत पर शासन । जिस घर में पालना झूलता है वह विश्व पर राज्य करता है। माँ चाहे आपकी हो या मेरी, वह तो माँ ही है । उसका हृदय विशाल ! परम विशाल । जिसके सामने शायद अम्बर भी छोटा है-अणु मात्र । “दुल्लहाओ मुहादाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा।"
(भगवती सूत्र-जैन धर्म ग्रन्थ) निस्वार्थ दाता और निर्लोभी जीवन जीने वाला पात्र दोनों दुर्लभ हैं। माँ भी तो इसी प्रकार की होती है क्या पिता में यह गुण विद्यमान है ? शायद अज्ञात है....।
"नर नाम उन महानुभावों का है जो सर्वजन अथवा प्राणिमात्र का नयन नायकत्व करते हैं । जिन्हें अपने बच्चों के लालनपालन की चिन्ता रहती है, उन्हे पिता कहते हैं। स्त्री-भोगी विषयी विलासी पुरुष-समूह हेतु पति शब्द प्रयुक्त हुआ है। विश्व के मानव प्रायः पिता या पति दो समूहों में हैं और दोनों मनुजाकृति में पशु ही हैं"। (वेदालोक-स्वामी विद्यानंद, 'विदेह') पर माँ ! असली दानी होती है। वह दान दासी नहीं, वह दान सहायिका भी नहीं बल्कि दानपतिनि होती है।
जो सुस्वादु भोजन करे पर दूसरे को अस्वादु दे वह दानदासी है। जो जिस प्रकार खाती है वैसा ही दूसरे को प्रदान करे वह दान सहायिका और दानपतिनि वह होती है जो अपने से अच्छा दूसरे को खिलाये। वास्तव में वही दानवीरा हैं जो स्वयं कष्ट सहकर, रूखा सूखा खाकर दूसरों को सुख देती हैं। अच्छा खिलाती है। माँ वीरों में वीरा दान रा है।
माँ पुत्र-पुत्री को उत्तम प्रेम दान देती है। पाराशर स्मृति में कथन है--"अभिगम्योत्तम दानमाहूयैव तु मध्यमम्, अधम् याचनानाय दानम्"। “देने वाली माँ है, जो देवत है दिन रैन"। देने वाली
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