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"The child is the father of the man."इसका अनुवाद एक सिनेमा प्रेमी को करने के लिए दिया तो बोला 'अमिताभ बच्चन' है।
आप भी तो उसी बाप के बेटे हैं। "जैसा बाप वैसा बेटा" वाली कहावत सही होती होगी किसी जमाने में....."पिता के विषय में क्या कहं-कन्यादाता, अन्नदाता, ज्ञानदाता, अभयदाता, मंत्रदाता, ज्येष्ठ भ्राता आदि ये सब पिता हैं। ऐसा 'ब्रह्मवैवर्तपुराण' के श्री कृष्णजन्म खण्ड का साक्ष्य है। चाणक्य ने कहा है कि "उपनयन कराने वाला भी पिता ही है।"
ये पिता लोग अपने को ही सर्वस्व समझते हैं। प्राचीन काल में माँ के प्रति और उसकी महत्ता का बड़ा ध्यान रखा जाता था। किन्तु मध्य युग में माँ जाति के प्रति अन्यायपूर्ण व्यवहार करना प्रारम्भ कर दिया गया। अपने आपको विद्वान् एवं नीतिकार मानने वालों ने तो यहां तक कह दिया कि नारी चंचल, कलहप्रिय और चरित्रहीन होती है। इसलिए इसे डंडे के बल पर चलाना चाहिए; स्वतन्त्रता कभी नहीं देनी चाहिए। जैसाकि तुलसीदास ने लिखा है
'ढोल गंवार शूद्र, पशु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी।" एक अन्य और नमूना देखिये
“जिमि स्वतंत्र होई, बिगरही नारी।" इन उक्तियों के माध्यम से तुलसी दास जी ने नारी जाति को प्रकटतः यद्यपि निन्दा सी की है,पर तुलसी जिस प्रकार का समाज और राष्ट्र निर्माण करना चाहते थे, उनकी पूर्ति नारी जाति के उन्नत हुए बिना असम्भव है। तुलसीदास के इस कथन में तड़ धातु का प्रयोग प्रत्येक पदार्थ के लिए भिन्न-भिन्न अर्थों में हुआ है, इसीलिए वैदेही जगज्जननी कहलायी है। "जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालानों का मूल । ईश का वह रहस्य वरदान, कभी मत इसको जाओ भूल ॥"
(कामायनी)
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