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कुमारों ने उस बच्चे को दृष्टि दी थी। विकलांग वष में अश्विनी कुमार को पद्मश्री (मरणोपरान्त) देने का सरकार का विचार था पर पता लगा कि अश्विनी कुमार मरते ही नहीं ! मनु महाराज ने अपनी स्मृति ( ४ - २६६, ३०० ) में लिख रखा है कि पिता जब पुत्र को पीटे तो डोरी या छड़ी से पृष्ठ भाग पर ही मारे, सिर पर नहीं, जो यह नियम नहीं मानेगा उसे चौर्यकर्म की सजा दी जाए। कभी बाप से बेटा सवाया, उपजे पूत कमाल हो जाते हैं। आज कैसा समय आगया है ! नित्य नए मंजर सामने ग्राने लगे हैं, बेटे बाप की हँसी उड़ाने लगे | अपनी जमानत न बचा पाये तो हमें कायदे कानून समझाने लगे
हैं ।
पिता जी की तो रामायण ही अलग है। उन्होंने सभी अधिकारों का स्वयं ही उपभोग करना प्रारम्भ कर दिया है और माँ को सर्वाधिकारों से वंचित रखा है । वे इसको कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते कि नर के समान नारी की भी सत्ता है, उसके भी अपने अधिकार है ।
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कुछेक क्षेत्रों में आज की नारी प्राचीन नारियों के समान नहीं है । जो उसे तुच्छ मानते हैं, उन्हें दृष्टि उठाकर देखने पर ज्ञात होगा कि नारी किसी भी क्षेत्र में पुरुष से कम नहीं है । विद्यालयों में, दफ्तरों में, पुलिस में, व्यापार में, चिकित्सा में और राजनीति में भी स्त्री पुरुष के कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है । अनेक क्षेत्रों में प्रवेश करके इसने अपनी गजब की शक्ति प्रदर्शित की है ।
परन्तु हमारे इस शिक्षित समाज में प्राज भी नारी का बिल्कुल सम्मान नहीं है, जिन्होंने भी नारी की निन्दा की है, वे यह नहीं जानते कि तुलसीदास को इतना ऊँचा बनने की प्रेरणा किसने दी । कालीदास को इतना बड़ा विद्वान् किसने बनाया, नारी ही ने ना ।
फिर उनको इतना नीच क्यों समझते हैं ।
भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी, लंका की प्रधान
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