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पुकार कहा कि “मेरी माँ के चुम्बन ने ही मुझे चित्रकार बना दिया है।" (A kiss from my mother made me a Painter) अतः स्पष्ट है कि माँ का दर्जा पिता से अत्यधिक ऊँचा होता है। यही कारण है कि माँ बाप, जननी-जनक, मम्मी-डैडी मदर-फादर इत्यादि शब्द युगल में भी माँ को पहले बोला जाता है।
अर्थ-साधन चलता रहे । माँ तो व्यर्थ है ? ऐसा मत समझ लेना। प्राप पिता को याद करने लग गये कि पिता के लिए सफेद पर काला नहीं किया। पिता ! जब-जब आप जैसे पुत्र ज्यादा चपड़ चू करें अधोलिखित महाभारत के शान्ति पर्व में (२६६/२१) श्लोक की तख्ती पर लिखकर आपके समक्ष रख दें।
"पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः ।
पितारि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्त सर्व देवताः ॥” दूसरी पंक्ति का भावार्थ यह है कि "पिता प्रसन्न होने से सर्व देबता संतुष्ट होते हैं। पिता देवों से आद्य है।" यानी अब हनुमान जैसे देवता को छोड़ दे जिसके पिता ही पवन र है। वरन् प्रत्येक सुर-सुरेन्द्र के माँ-बाप तो होते ही हैं। " "को माता को पिता हमारे?" __आप पूछेगे-पाप का बाप तो लोभ पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के बाप का नाम क्या था? जो सबका बाप हो उसका बाप और कौन होगा? ऐसे प्रश्न क्यों पूछते हो? यह तो चर्चा का विषय है और चर्चा का सार मर्चा है। एक अंग्रेजी अल्प जानने वाले ने क्रोध में पूछा "वाट गोत्र प्राफ युअर फादर ? एक विद्वान ने हमें बताया कि स्कन्द पुराण में शिव का गोत्र 'नाद' बताया गया है परन्तु अब हम पित चिकित्सा नहीं करेंगे। अपने लक्ष्य की ओर चलते हैं । लक्ष्य नहीं तो कुछ नहीं। समाज की उन्नति हेतु सद्गुणों की होड़ और लक्ष्य के अनुकूल दौड़ अच्छी होती है ।
अपना लक्ष्य है माँ ! दौड़ है माँ ! हम उसके दासानुदास हैं
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