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और वह है स्वामिनी ! क्यों? किस कारण ? इस बारे में नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा और वह भी ध्र व सत्य । “एक अच्छी माँ सौ शिक्षकों की आवश्यकता को पूरा करती है।" संतानों के चरित्र को घड़ने वाली और उसके द्वारा समाज और राष्ट्र को बनाने वाली माँ ही है। सर्व विवाहित और माता-पिता बने पाठकों का अनुभव भी साधारणीकरण के न्याय से यहीं विवाद का विषय होगा कि बच्चे में अच्छे और बुरे गुण माँ के होते हैं अथवा पिता के नारी वर्ग का कहना है कि जो सर्व निम्न गुण बेटे-बेटी में हैं वे पिता के ही हैं। “माता कुमाता न भवति" । पुरुष की मान्यता है कि सभी बच्चे माँ के लाड़ के कारण बिगड़ते हैं ।
स्वीडन में १६७४ में एक कानून पास हुआ, जिसे अब लागू किया गया है। 'स्त्री-पुरुष के समानता के अधिकारों में अब जिम्मेदारी केवल माँ की नहीं होगी, पिता को भी यह दायित्व समान रूप से निभाना पड़ेगा'। (स्टेट्स मैन, १८ फरवरी १९८१) ___ लो बच्च ! पकड़े गये न अब ? आप भी कम नहीं। लातों के देव बातों से मानने वाले नहीं। तभी तो माँ की महिमा सभी गाते हैं। यदि आप सपूतों का जन्म नहीं होता तो माँ को अपार कष्ट होता। यही सोचकर कि मेरे समीप प्रेम-अमृत है,लेकिन मैं किसी को पिला न सकी। यद्यपि वर्तमान युग के कुछ पिता तो सोचते है “कन्या-पितृत्वं खलु नाम कष्टं" कन्या का पिता होना ही कष्टप्रद है। अच्छा हुआ गांधी जी के चार लड़के ही हुए। लड़की नहीं । लेकिन आप यह क्यों नहीं सोचते कि कन्या के बिना पिता कैसे बने ! पहले कन्या का जन्म हुआ तभी तो पिता बने । बड़ा अच्छा हुअा "अंगूर को बेटा न हुआ”। माँ के लिए बेटा-बेटी दोनों समान हैं। दोनों को एक साथ प्रेम करती हैं, भोजन कराती है।
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