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आधुनिक अर्थशास्त्र जनक एडमस्मिथ ने बेटे और दहेज का परिणाम बहू को स्वीकृत किया है। मेरे लिए यह कथन करना शोकयुक्त तथा दुष्कर है कि जगत् में सास का आगमन सर्वप्रथम हुना या बहू का, बाप पहले पाया या बेटा, पत्नी पहले आयी या पति आया शायद आप जानते ही होंगे.......।
विश्व की सभी सिंदूरधारिणी वधुओं का कथन है कि सास आखिर सास होती है और उन वधुओं के वरों का भी यही उपयुक्त कथन है कि माँ भी आखिर माँ ही होती है। चाहे वह पत्थर-मिट्टी से निर्मित हों या हाड़-मांस से... वधू और वर के मस्तिष्क मतानुसार सास-माँ पूर्णरूपेण नहीं तो लगभग गलत व खराब होती हैं और सास के शब्दानुसार उसके लाड़ले की किस्मत फूट गई, जो ऐसी वधू मिली।
एक व्यक्ति की अविस्मरणीय आश्चर्यकारी और रोचक बात प्रदर्शित करूं । औसतन भारतीय परिवारों की भांति ही मेरे गृह में भी सास व बहू विद्यमान है। मेरी मान्यता है कि इन द्वय महामूर्तियों की उपस्थिति मेरे श्रेष्ठ सौभाग्य की परम रेखा है । और जब से ये दोनों घर में हैं । मैंने तो छवि-घर जाकर चलचित्र देखना बन्द कर दिया है और दूरदर्शन-पट इसलिए विक्रय किया, क्योंकि ये दोनों स्व संगठन कर हमेशा ऐसी सुन्दर नाटकीय स्थितियाँ घर पर ही उपस्थित कर देती हैं। न मालूम कौन सी दैविक शक्ति इन माननीयों को उपलब्ध है कि घर पर ही “सौ दिन सास के और तीन सौ पैंसठ दिन बहू के" द्रष्टव्य हो ही जाते हैं । पत्नी की सास मेरी माँ है और मेरी माँ की बहू मेरी पत्नी है । जब इन राजमाता और राजरानी दोनों का हस्तयुद्ध और वाक युद्ध का शुभारम्भ होता है, उस समय भारत सदृश ही मेरी स्थिति तटस्थ होती है।
राष्ट्र की जानी पहचानी सास बहू का श्रीमती गांधी के परिवार में जिस दिन से आत्मिक शीतयुद्ध प्रारम्भ हुआ है, उसी दिन से पंचम्
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