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लुखो सूखी रोट्यो खाकर, सासू दिन गिण काटे रे । मगर बिनणी बड़ी चटोकड़, ताजा माल उड़ावे रे । होटल में धक्का खाया बिन, एक दिवस नहीं जावे रे । सासू जी तो करे रशोई, बहू सिनेमा जावे रे ।
यो कलियुग साफ सुणावे रे । चीन और जापान की साड़ीयां बहू ने नित नई चइजे रे। सासू जी तो बणिया बिनणी, बहू सासू बण बैठी रे। सिगले घर पर हुकम चलावे, या बहू निराली आई रे। कान खोल सुण सासू बहू का सच्चा हाल बताया रे ।
यो कलियुग साफ सुणावे रे । मेरी पत्नी का कार्यक्रम सास की अपेक्षा सहस्र गुना उत्तम ही होता है। उसका कार्य दिनभर समझ-समझ कर ऐसी विकट सुन्दर परिस्थितियों का निर्माण करना है जिनमें भारत और पाकिस्तान के युद्ध की घोषणा की संभावनाओं की भूमिका तैयार हो जाए। ___ सास के साथ आवश्वक सामग्री क्रय करने बहू चली गई और मन में कुछेक विचारों का आगमन हो गया तो वहीं बैंड बाजों का उद्घाटन कर देगी। घर में रसोई बनाई तो किसी दिन रोटी कच्ची या जली हुई । सब्जी में किसी दिन ज्यादा नमक तो किसी दिन साग में नमक लापता । फिर मैं गुमशुदा नमक को साग संसार में खोजने लगता हूं। यदि नमक बराबर डालने की कृपा कर दी तो किसी दिन मिर्च ही मिर्च और किसी दिन धनिया ही धनिया । अब मेरी पत्नी की सास कब तक विनोबा भावे जी की तरह मौन अंगीकार करे। बस उनके मात्र बोलने की देर है कि मेरी पत्नी कुरुक्षेत्र में कूदने के लिए तैयार। ___'तुम्हें सब्जी बनाना नहीं आता'-माँ ने अगर कह भी दिया ऐसा तो पत्नी जी आँखें तरेर कर, गुर्राटे करती हुई कहेगी-'मुझ से तो ऐसी ही बनेगी यदि आपको पसन्द नहीं है तो स्वयं ही बैठ कर बना
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