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भी मुझ जैसी याचक दशा हो जायेगी । “झूठे टुकड़ों की अाशा लेकर जो घर घर में भटकते फिरते हैं।" ___ मैं अधुना मनुष्य रूप में हूँ। अतीत में कहाँ था और अनागत में कहाँ रहूँगा, इसकी किसे सूचना है, कौन कह सकता है ? पर रहूँगा नितान्त निश्चित...."उसका कारण यही है कि आत्मा अजर, अमर अविनाशी और अविभाज्य है। - असीम कल्पनाओं से जुड़ने वाले, पृथ्वी और गगन की दूरी के सृदश लम्बी-लम्बी योजनाएँ निर्मित करने वाले, जीवन-यात्रा में ऊँची-ऊँची उड़ान भरने वाले, अपने आपको अनन्त शक्ति का धनी स्वीकार करने वाले मनुष्य को मृत्यु एक क्षण में कैसे विध्वंस कर देती है। और... 'और न जाने कब वह पल जीवन में आ जाए। अतः स्वकर्तव्य का पालन करो, माँ की सेवा-भक्ति करो ।, भिखारी बोला।
मेरा मन वर्तमान, भूत, भविष्य के चिन्तन की गहराई में डूबता उतरता रहा । देखो एक दुःखी व्यक्ति को-निर्धन याचक को-गरीब के सहदय को। माँ के लिए प्राप्त साधन को त्याग करने की लालसा कितनी तीव्र है, उसके लिए तप करने की, बलिदान एवं प्रात्म न्यौछावर करने की अभिलाषां कितनी उत्कट है।
धन्य है रे भिखारी ! तू है तो याचक, पर तेरे मानस में माँ के लिए स्थान इतना निर्मल-पवित्र। कौन कहता है कि तू फकीर है ? संभव है बाह्य रूप से जेब का फकीर हो परन्तु दिल से तो पक्का अमीर है । तेरा माँ के प्रति प्रेम-भाव पूर्ण समर्पित है। जिन्हें श्रद्धा सुमन से सम्बोधित करे, यही वास्तिवक सम्पत्ति है।
"प्रेम-भाव सा कोई शुभ धन नहीं हैं। प्रेम-भाव सा कोई कंचन नहीं है। चाहे खोजले कोई कितना कहीं भी। प्रेम-भाव सा दूजा मधुवन नहीं है । नहीं वैर भावों से मन शान्त होता, मगर प्रेम सा जग में चन्दन नहीं है।
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