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२४ शैव लोग शिव, वेदान्तद र्शन ब्रह्म, बौद्ध-बुद्ध, न्याय दर्शन कर्ता, जैन शासन जिन के अनुयायी अर्हन और मीमांसक “कर्म" कहकर उस परमात्मा की उपासना करते हैं।
इसे ही ईसाई धर्म में 'गाड' और इस्लाम धर्म में खुदा कहा गया है। सिक्ख लोग "कार", कबीर पंथी “साई" और पारसी धर्मालम्बी अशोजरथुस्त कहते हैं।
दूध के भी अलग-अलग राष्ट्रों व प्रान्तों में पृथक-पृथक नाम है । “नहीं है।" अोह ! लेखनी से लिखा वह असत्य नहीं हो सकता। दूध को कोई क्षीर, दुग्ध तो कोई हालु, पालु, पेर, मिल्क आदि नाम से पुकारते हैं।
क्या भाषा-भेद के कारण परमात्मा अथवा दध का गुण बदल जाता है ? "नहीं" वैसे ही माँ के नाम पृथक्-पृथक् होने से उसके गुण में कोई भेद नहीं आता।
_ "माता एवं हतो हन्तिः, माता रक्षति रक्षितः । माँ ! वह एक ऐसी बहुमूल्य वस्तु है जिसको छोड़ देने पर हमारे अमोल जीवन का नाश हो जाता है और इसको सुरक्षित रखने पर वह जीवन की रक्षा करती है। इसलिए
"माँ मंगलम्, माँ लोगुत्तमा" के नाम से अभिहित किया जाता है।
और तभी तो इसको दूसरे शब्दों में मनुष्य के उन्नत जीवन की • स्रष्टा के नाम से सम्बोधित किया गया है। "नहीं माँ बिना कुल" यह उक्ति सार्थक करती माँ सन्तानों की केवल जन्मदात्री ही नहीं उसके जीवन की जतन करने वाली "जनेता" भी है।
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