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३१.
"जहा लाहो तहा लोहो लाहा लोहो पवड्ढ़इ" (उत्तराध्ययन सूत्र )
जैसे-जैसे लाभ होता है वैसे वैसे लोभ में बढ़ोत्तरी होती जाती है । वह बनवीर भी सत्ता हाथ में आते ही अपने राज्य को निष्कंटक बनाने के लिए गुप्त मन्त्रणा करके विक्रमाजीत का मौत से विवाह करवा दिया । अब उसकी भुजाएँ मचलने लगी बालक उदयसिंह का कत्ल करने के लिए ।
पन्ना धाई पन्द्रह वर्षीय उदयसिंह का एवं राजकुमार की सम आयु वाले अपने लड़के का बड़े लाड़-प्यार से पालन-पोषण करती थी । विक्रमाजीत की हत्या के समाचार सुनते ही पन्ना माँ ने राजकुमार को उसी रात्रि में विश्वस्त रुषों के साथ नगर से बाहर करवा दिया था ।
दीपक के प्रकाश में रात्रि को लगभग बारह बजे होंगे कि हाथ में विषबुझी नग्न तलवार लेकर बनवीर पन्नाधाई के कमरे में
आया ।
बता ! वह उदयसिंह कहाँ सोया है ? बादल - बिजली के समान कड़कते हुए पूछा बनवीर ने ।
पन्ना धाई का रोम-रोम कांप उठा । शय्या पर उसका पुत्र सो रहा है । अत्र क्या किया जाय ? एक ओर स्वामिभक्ति दूसरी ओर पुत्र मोह । एक और कर्त्तव्य दूसरे ओर ममत्व । एक ओर मेवाड़ मुकट दूसरी ओर .....
यदि उदयसिंह जीवित रह गया तो मेरे पुत्र जैसे लाखों बच्चों का प्रजापति बनेगा । पर मेरा पुत्र ...मेरा पुत्र मुझे अपने हृदय को पत्थर बनाना होगा। जिसकी कृपा से मेरा और मेरे पुत्र का पालन-पोषण होता है उसको बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान करना ही पड़ेगा । यदि अपने पुत्र को बचाने के लिए सच्चाई प्रगट कर दूँ तो यह कहीं से भी खोजकर उसका वध कर ही डालेगा । यदि उदयसिंह को बचाती हूँ तो मेरा पुत्र
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