Book Title: Maa
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Mahima Lalit Sahitya Prakashan

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Page 31
________________ २० अर्हन्नकमुनि विलास में डूबी हुई इस स्त्री की यह वाणी सुनकर आश्चर्य चकित हो गए। उनके हृदय में शेष निर्बलता भी इन वचनों से समाप्त हो गई और उन्होंने फिर से मुनिवेश धारण कर लिया । वह स्त्री और भद्रा माता दोनों उसके सामने देखती रही और आँखों से अश्रुधारा बह निकली। इसलिए मैं कहता हूँ नारी महान् है प्रति महान् ! जननी जननी है, जीवित वस्तुनों में जो सर्वाधिक पवित्र है । अंग्रेज कवि एस० टी० कोलरिज का भी कथन है—A mother is mother still the holiest thing alive अर्हन्नक मुनि फिर से साधु बन गए । वह स्त्री भी साध्वी बन कर भद्रा माता के साथ साध्वी संघ में रहने लगी । अर्हन्नक मुनि किसी भी परिषह से नहीं डरते । अच्छे-अच्छे दृढ़ संयमी मुनियों से भी वह परिषह सहन करने में आगे निकल जाते और उसमें अपना कल्याण मानते । वे जिस प्रकार पतित हुए थे उसी प्रकार ऊँचे भी उठ गए । शेरनी की कुख से उत्पन्न होकर शेर जैसा ही उन्होंने कार्य किया लोमड़ी की तरह नहीं । ऐसे माँ-पुत्र के जीवन को ग्रहण करने के लिए आज भी " अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी" सज्झाय गाई जाती है । आज भी अनेक व्यक्ति उनके जीवन से लाभान्वित होते हैं और थाने वाली पीढ़ियां भी आलोक प्राप्त करेंगी । अभिप्राय यही कि माँ की ममता 'कितनी विशाल हैं । गज में ऐरावत, पशुओं में मृगेन्द्र, पुष्पों में अरविन्द, पक्षियों में वेणुदेव गरुड़, सरिता में गंगा, मंत्र में ॐ और जीवन में मां का इस जगत् में बहुत महत्व है । माँ यानि जन्म के बाद जीवन को सुवासित करने के लिए जो विशुद्ध क्रिया जिसके द्वारा की जाती है उसका नाम माँ है । माँ - पुत्र अपने जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति को उन्नति के प्रच्युत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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