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होने पर राजा द्वारा वाहन चालक और स्वामी दोनों को दण्डित करना चाहिए। इसका फलित यह है कि अकुशल चालक नियुक्त करने वाला वाहन स्वामी भी अपराधी है। यदि चालक की अकुशलता का दोष दुर्घटना होनेपर वाहन स्वामी को प्रभावित करने लगे तो अप्रशिक्षित चालकों के हाथ में वाहन देने की परम्परा स्वतः समाप्त होजाय। साथ ही येन-केन प्रकारेण कुशलता का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने की भी प्रवृत्ति पर अंकुश लगे और सड़क पर जीवन की सुरक्षा में गुणातीत सुधार हो जाय
मूर्खत्वे सारथेर्दण्ड्यो युग्मे भूपेन सारथेः। ३.१८.२०॥
लघ्वर्हन्नीति में अनेक ऐसी व्यवस्थाओं का वर्णन आचार्य हेमचन्द्र ने किया है जिनको आज के प्रशासन में भी अपनाया जासकता है। इसप्रकार शासक और नागरिक दोनों के लिये यह ग्रन्थ आज भी प्रासङ्गिक है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपनी मेधा से एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की थी। कृतज्ञता ज्ञापन
लघ्वर्हन्नीति परियोजना की पूर्णता के अवसर पर सर्वप्रथम मैं परमादरणीय गुरु प्रोफेसर सुरेश चन्द्र पाण्डेय, पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं परमादरणीय क्वाण्डम प्रोफेसर सत्य रञ्जन बनर्जी. कोलकाता का उनके आशीर्वाद एवं प्रोत्साहन हेतु हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। भोगीलाल लहेरचन्द संस्कृति विद्यामन्दिर के अध्यक्ष माननीय श्री निर्मल भाई भोगीलाल, सभापति माननीय श्री राजकुमार जैन सहित समस्त प्रबन्ध मण्डल
और निदेशक डॉ. बालाजी गणोरकर के प्रति उनके सहयोग के लिये धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। श्री देवेन यशवन्त जी, पूर्व कोषाध्यक्ष की इस कार्य में विशेष रुचि थी। भारत के महान विधिवेत्ता एवं राजनयिक स्वनामधन्य स्व० लक्ष्मीमल्ल संघवी से किसी समारोह में श्री देवेन जी ने सुना था कि एक महान निर्ग्रन्थ आचार्य ने अपने शिष्य राजा कुमारपाल को उसके आग्रह पर राजनीति - शासन करने का उपदेश दिया है। वह निश्चित ही अद्भुत होगा। इसका अनुवाद सहित प्रकाशन अवश्य होना चाहिये। मैं भी जब पार्श्वनाथ विद्यापीठ में कार्यरत था। एक बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय राजनीति शास्त्र विभाग के मेरे आदरणीय गुरु प्रो. प्रमोद कुमार मित्तल, अर्हन्नीति की पाण्डुलिपि की खोज में विद्यापीठ आये। रात्रि-विश्राम के समय वार्तालाप के क्रम में उन्होंने कहा कि निवृत्तिमार्ग के पोषक धर्म के अनगार आचार्य हेमचन्द्र जैसे आत्मकल्याण के साथ-साथ लोककल्याण को समर्पित, अपनी अद्वितीय मेधा के कारण जो कलिकाल सर्वज्ञ माने जाते थे, उनका अपने शिष्य राजा को व्यावहारिक राजनीति का दिया हुआ उपदेश निश्चित ही आज भी प्रासङ्गिक होगा और विसङ्गतियों से भरे इस काल