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तृतीय अधिकार
३.१३
समयव्यतिक्रान्तिप्रकरणम्
प्रणिपत्य मुदा शान्तिं शान्तं शान्ताशिवं शिवम् । निगद्यतेऽत्र समयव्यतिक्रान्तिर्नृसंविदे ॥ १ ॥
अकल्याण का शमन करने वाले शिव - मोक्ष रूप तथा शान्त शान्तिनाथ को हर्षपूर्वक वन्दन कर मनुष्यों के ज्ञान हेतु यहाँ समयव्यतिक्रान्ति का लक्षण कहा जाता है।
( वृ०) पूर्वप्रकरणे वाक्पारुष्यमुक्तं सति तस्मिन् क्रोधाद्यावेशवशेन समयव्यतिक्रान्तिरपि सम्भवत्यतस्तत्स्वरूपमुच्यते
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पूर्व प्रकरण में वाणी की कठोरता का वर्णन किया गया उसमें क्रोध आदि आवेश के वश नियम का अतिक्रमण भी सम्भव है अतः उस (समयव्यतिक्रान्ति) का स्वरूप वर्णित किया जाता है।
स्थितिर्हिनैगमादीनां समय इति कथ्यते ।
तस्य चोल्लङ्घनं ज्ञेया व्यतिक्रान्तिर्विवादभूः ॥ २ ॥
नैगम - व्यापारियों आदि द्वारा निश्चित नियम समय कहे जाते हैं । उस (समय) का उल्लङ्घन जो विवाद का मूल है, उसे व्यतिक्रान्ति जानना चाहिए।
सदा सामयिकं धर्मं स्वधर्ममपरित्यजन् । पालयेदतियत्नेन भूपोऽन्योऽपि च मानवः॥३॥
राजा एवं अन्य मनुष्यों को भी अपने धर्म का त्याग न करते हुए समय धर्म अर्थात् परम्परागत नियम का पालन करना चाहिए।
समुदायस्य राज्ञां च धर्मः सामयिकः तमतिक्रमतो दण्डो व्यवहारपदे भवेत्॥४॥
स्मृतः ।
१. सामायिकम् भ १, २, १, २ ॥
२.
सामायिकः भ १, भ २, प १, प २ ॥