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लघ्वर्हन्नीति
बन्दिचारणशैलूषा दीक्षिताः कारवस्तथा। ये सज्जयन्ति स्वा नार्यस्तत्स्त्रीभिर्भाषणं नराः॥१२॥ कुर्वन्तो न निवार्याः स्युः राजलोकनरैः कदा।
प्रायशो वृत्तिरेतेषां स्त्र्यधीना प्रथिता भुवि॥१३॥ बन्दी, चारण, भाट, दीक्षित तथा कलाकार जो अपनी पत्नियों को सज्जित कर रखते हैं, उन स्त्रियों से वार्तालाप करते हुए पुरुषों को राजपुरुषों द्वारा कभी नहीं रोकना चाहिए क्योंकि प्रायः इन लोगों की जीविका ही स्त्रियों के अधीन है - यह जगत प्रसिद्ध है।
कन्याङ्गे विकृतिं या स्त्री कुर्यात्तच्छीर्षमुण्डनम्।
कारयित्वाङ्गुलिच्छेदं चैनां निष्कासयेत् पुरात्॥१४॥ जो स्त्री कन्या के अङ्ग में विकृति करे उसका सिर मुड़ाकर और अङ्गलि काटकर उसे नगर से निष्कासित करना चाहिए।
स्ववंशगुणदर्पण भर्तारं या न मन्यते।
तां भिन्नां स्थापयेद्भूपो न पुनर्दर्शयेत्पतिम्॥१५॥ जो स्त्री अपने (पितृ) कुल की श्रेष्ठता के कारण पति को सम्मान नहीं देती है उस (स्त्री) को राजा अलग रखवा दे और पुनः पति (मुख) को न दिखावे।
परस्त्री सेवते वर्षाद ज्ञातो यां च भूमिभृत्।
तदुदन्तं चरैख़त्वा दण्डयित्वा विवासयेत्॥१६॥ (कोई पुरुष यदि) वर्षपर्यन्त परायी स्त्री का भोग करता. है और राजा को ज्ञात नहीं होता तो उसका चरित्र अपने गुप्तचरों द्वारा ज्ञात कर (राजा) उसे दण्डित करना चाहिये और नगर से निष्कासित कर देना चाहिये।
क्षत्रब्राह्मणवैश्यानां स्त्री वा कन्यां निषेवयेत्।
शतैर्दमनमाद्ये तु लिङ्गभेदः परे स्मृतः॥१७॥ (यदि कोई पुरुष) क्षत्रिय, ब्राह्मण और वैश्य की स्त्री अथवा कन्या के साथ भोग करे तो प्रथम (स्थिति) में सौ (मुद्रा) दण्ड और दूसरी (स्थिति में) लिङ्गच्छेदन (का दण्ड) कहा गया है।
दण्ड्यो द्विजो द्विजां गच्छन् सहस्ररजतैर्भवेत्।
क्षत्रियः क्षत्रियां गच्छन् दण्ड्यो युग्मसहस्रकैः॥१८॥ १. ०ङ्गुलीछेदं प १, प २॥ २. तर्षाद प १, प २॥ ३. निषेवये भ १, भ २, प १, प २।।