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सम्पूर्ण अमङ्गल या अशुभ के विदारण में चक्र रूप (बाईसवें तीर्थङ्कर) नेमिनाथ का हर्षपूर्वक वन्दन कर स्त्री-पुरुष के धर्म-व्यवहार का संक्षेप से वर्णन किया जाता है।
तृतीय अधिकार
३.१९
स्त्रीपुरुषधर्मप्रकरणम्
नेमिं नत्वा मुदा नेमिं 'सर्वारिष्टविभेदने । स्त्रीपुंधर्मव्यवहृतिः संक्षेपेणात्र वर्ण्यते॥१॥
(वृ०) पूर्व प्रकरणे दण्डपारुष्यवर्णनं कृतम् -
पूर्व प्रकरण में दण्डपारुष्य का वर्णन किया गया
( वृ०) दण्डस्तु धर्मरक्षार्थं जायतेऽतोऽधुनास्त्रीपुरुषधर्मप्ररूपणाधिक्रियते
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१.
२.
दण्ड सदा धर्म की रक्षा के लिए होता है इसलिए अब स्त्री-पुरुष के धर्म की प्ररूपणा की जाती है
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पित्रादयः स्वबुद्धया यं 'सुन्दरं प्रेक्ष्य कन्यकाम् । दद्युः सा निर्गुणं चापि पूजयेद्देववत्तकम् ॥२॥
पिता आदि (स्वजनों) द्वारा अपनी बुद्धि से जिस पुरुष को सुन्दर देखकर (अपनी) कन्या दी जाती है गुणरहित होने पर भी वह उसे देवता के समान पूजती
है।
भर्त्रापि मिष्टवचनैः सन्तोष्या सा नवाङ्गना । पक्वान्नदधिदुग्धाद्यैः पोषणीया निरन्तरम् ॥३॥
स्वामी के द्वारा भी वह नवविवाहिता स्त्री मधुर वचनों से सन्तुष्ट की जानी चाहिए। पकवान, दूध, दही आदि से वह निरन्तर पोषित की जानी चाहिए।
सर्बा० प २ ॥
सुन्दर भ २ प २ ॥