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लघ्वर्हन्नीति
चतुर्विंशतितीर्थनाथस्तुत्या विघातौघविनाशभावात्। यत्सूत्रितं सर्वजनोपकृत्यैभूयात्प्रजाभूमिपबोधहेतुः॥५१॥
इस प्रकार चौबीस तीर्थङ्करों की स्तुति द्वारा विघ्न समूह के विनाश के भाव से समस्त जनों के उपकार के लिये जिस अर्हन्नीतिशास्त्र को सूत्र रूप में निबद्ध किया गया वह प्रजा और राजा दोनों के ज्ञान के लिये हो।। ___ (वृ०) अनादिमङ्गलाचरणे प्रथमचरमतीर्थङ्करनमस्कृत्या ग्रन्थान्तःकरणेषु मध्यमद्वाविंशतितीर्थकृदन्नुत्या चतुर्विंशतिस्तवो ज्ञेयः।
इस लघुअर्हन्नीतिशास्त्र में आरम्भ के मङ्गलाचरण में प्रथम और अन्तिम तीर्थङ्कर को नमस्कार कर ग्रन्थ के अन्दर मध्य के बावीस तीर्थङ्करों की वन्दना की गई है अतः चौबीस तीर्थङ्करों का मङ्गलस्तवन जानना चाहिए।
इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते चौलुक्यवंशभूषणपरमार्हत्कुमारभूपालशुश्रूषिते लघ्वर्हन्नीतिशास्त्रे लौकिकप्रायश्चित्तविधिवर्णनो नाम चतुर्थोऽधिकारः॥४॥
चौलुक्यवंशभूषण परमार्हत कुमारपाल राजा की श्रवण-इच्छा से आचार्य श्री हेमचन्द्र विरचित लघुअर्हन्नीतिशास्त्र में लौकिक प्रायश्चित्त विधि वर्णन नाम का चतुर्थ अधिकार है।
॥समाप्तोऽयं ग्रन्थः॥ ॥ लघु-अर्हन्नीतिशास्त्रम् समाप्तम्॥