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लघ्वर्हन्नीति
भोजनावसरे भुक्त्वा गुरुदानावशिष्टकम्। सुखं कृत्वा मुहूर्तं च कुर्याद्वयवहृतिं पुनः॥४९॥ दिवसस्याष्टमं भागं यावत्सत्प्रतिभान्वितः।
ततो भुक्त्वावश्यकादिक्रियां कुर्याद्विचक्षणः॥५०॥ गुरु को दान देने के बाद बचे अन्न का समय पर भोजन कर, मुहूर्त भर विश्राम कर पुनः कार्य में संलग्न होना चाहिए। दिन का आठवाँ भाग शेष रहे तब भोजन कर सद्बुद्धि युक्त बुद्धिमान् पुरुष आवश्यकादि क्रिया करे।
स्त्रीपुंधर्मविचारोऽयं समासेन निरूपितः।
सर्वजीवोपकाराय लोकद्वयहितावहः॥५१॥ इस लोक तथा परलोक दोनों में सभी प्राणियों के परोपकार के लिए यह स्त्री-पुरुष कर्त्तव्य-विचार का संक्षेप में निरूपण किया गया है।
। इति स्त्रीपुंधर्मप्रकरणम्॥ (वृ०) इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचिते चौलुक्यवंशभूषणपरमार्हत्कुमारभूपालशुश्रूषिते लघ्वर्हन्नीतिशास्त्रे व्यवहारनीतिवर्णनो नाम तृतीयोऽधिकारः।
__यह चौलुक्यवंशभूषण परमार्हत कुमारपाल राजा के श्रवण की इच्छा से आचार्य श्री हेमचन्द्र विरचित लघु-अर्हन्नीतिशास्त्र में व्यवहारनीतिवर्णन नामक तृतीय अधिकार है।