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साहसप्रकरणम्
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जीर्णे तु नष्टे रजको न दोषभाक् पुराने वस्त्र के नष्ट हो जाने पर धोबी दोष का भागी नहीं होता है। अथ पितृपुत्रविवादे साहसेन साक्ष्यदाने दण्डमाह - पिता-पुत्र के विवाद में औद्धत्यपूर्वक साक्षी देने पर दण्ड का वर्णन -
तातपुत्रकलहे च साक्षितां साहसात्कलहवर्द्धयेऽधमो यो ददाति न च वारयेत् कलिं दण्ड्यते त्रिकपणैश्च भूभुजा।
पिता-पुत्र के विवाद में कलह बढ़ाने के लिए जो अधम व्यक्ति साहस पूर्वक साक्षी देता है और क्लेश का निवारण नहीं करता है उस अधम व्यक्ति को राजा तीन मुद्राओं से दण्डित करे।
अथ कूटव्यवहारदण्डमाह - अब कूट व्यवहार दण्ड के लक्षण का कथन
कूटमानतुलाभिर्यः शासनैर्नाणकेन च।
कूटव्यवहृतिं कुर्याद्दण्ड्य उत्तमसाहसैः॥२४॥ जो खोटे माप-तौल, नकली राज्य नियमों और खोटे सिक्के (नाणक) से खोटा व्यवहार करता है उसे शासन द्वारा उत्तम साहस (अपराध) का दण्ड देना चाहिये।
अकूट कूटमेवं च कूटं बूते ह्यकूटकम्।
यो नाणकं तु लोभेन स दण्ड्यः परसाहसैः॥२५॥ जो पुरुष लोभवश खोटे सिक्के (नाणक) को असली सिक्के (नाणक) और असली को खोटा बताता है उसे अधम अपराध के रूप में दण्डित करना चाहिए।
तिर्यमनुजभूपानां चिकित्सां कुरुतेऽभिषक।
स दण्ड्यः क्रमशश्चाद्यमध्यमोत्तमसाहसैः॥२६॥ जो वैद्य (वैद्यक शास्त्र को न जानते हुए) पशु-पक्षी, मनुष्य और राजा की चिकित्सा करता है उसे क्रमशः अधम, मध्यम और उत्तम अपराध के दण्ड से दण्डित करना चाहिए।
(वृ०) यो वैद्यःशास्त्रमजानन् प्रपञ्चेनाहं भिषग् इति वदन् तिरश्चां चिकित्सा कुर्वन्नाद्यसाहसेन दण्ड्यः
१. ०र्माणकेन भ १, भ २, प १ ०निकेन प २॥ २. भौपानां भ २, प १, प२॥