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दण्डपारुष्यप्रकरणम्
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चाहिए। मिट्टी, धातु और काष्ठ के पात्रों को नष्ट करने पर (उसके मूल्य का) पाँच गुना (दण्ड) कहा गया है।
मार्गे यानादिभिर्नाशे सारथिं दण्डयेन्नपः।
मदहेतुविमुक्तश्चेदन्यथा न हि दण्डयुक्॥१५॥ (दुर्घटना के कारणों को छोड़कर) मार्ग में वाहनादि से क्षति होने पर राजा सारथी को दण्डित करे। निश्चित रूप से अकस्मात् क्षति होने पर दण्ड का योग नहीं है।
(वृ०) केऽष्टौ हेतवः इत्याह - (क्षति होने पर दण्ड न पाने के) आठ कारण कौन से हैं, यह कथन
युगाक्षयन्त्रचक्राणां भञ्जने राशिभङ्गके। वृषे तु सम्मुखं प्राप्ते भूवैषम्ये दृषद्गणे॥१६॥ गच्छगच्छेतिपूत्कारे कृते सारथिनाऽसकृत्।
न दण्ड्या यानयानेशस्वामिनः स्युनूपेण वै॥१७॥ युग, अक्षयन्त्र और चक्कों के टूटने, राशि टूटने, सामने साँड़ के आने, भूमि असमतल होने, पत्थर का ढेर आने और वाहन चालक द्वारा बार-बार 'हटो-हटो' चिल्लाने की स्थिति में दुर्घटना होने पर गाड़ी, गाड़ी वाले तथा स्वामी को राजा द्वारा दण्डित नहीं किया जाना चाहिए।
अज्ञत्वात् सारथेर्युग्ममन्यत्राकर्षयेद्रथम् । परवस्तुविनाशे च स्वामी दण्ड्यो न सारथिः ॥१८॥ युग्ममुद्राशतं दण्डं गृह्णीयाद्भूपतिस्ततः।
सारथिः कुशलश्चेत्सो दण्ड्यः स्वामी न दोषभाक्॥१९॥ सारथि की अज्ञानता से यदि बैल रथ को दूसरी ओर खींच ले जाये तो दूसरे की वस्तु के नष्ट होने पर स्वामी दण्डनीय है वाहन चालक नहीं। (इस स्थिति में) राजा स्वामी से दो सौ मुद्रा दण्ड ग्रहण करे। यदि वाहन चालक निपुण हो तो वही दण्डित किया जाना चाहिए, स्वामी दोष का भागी नहीं है।
मूर्खत्वे सारथेर्दण्ड्यो युग्मे भूपेन सारथेः।
शतमुद्रां गृहीत्वा "प्राग्यानमीशं च दापयेत् ॥२०॥ १. ०येद्रव्यं भ १, भ २, प १, प २॥ २. दण्ड्ये प १, प २॥ ३. मूर्खत्वे भ २॥
दण्ड्यो युग्मो भ १, भ २, प १, प २॥
प्रग्घानिमोशंच भ १, भ २, प १, प २॥ ६. विधाययेत् भ १, विधापयेत् भ २, प १, प २।।
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