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स्तैन्यप्रकरणम्
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प्रजास्वास्थ्ये नृपः स्वस्थस्तदुःखे दुःखितो नृपः।
तस्माद्यनं प्रजास्वास्थ्येऽहर्निशं कुरुते नृपः॥४॥ प्रजा के सुखी रहने पर राजा सुखी, उस (प्रजा) के दुःखी रहने पर राजा दुःखी, इस कारण राजा प्रजा के स्वास्थ्य के लिए दिन-रात प्रयत्न करे।
प्रजादानार्चनादीनां षष्ठांशं लभते नृपः। पुण्यात्ततो' ने तिभयं कोषवृद्धिश्च जायते॥५॥ शिष्टानां पालनं कुर्वन् दुष्टानां निग्रहं पुनः।
पूज्यते भुवने सर्वैः सुरासुरनृयोनिभिः ॥६॥ प्रजा (द्वारा कृत) दान, पूजा आदि का छठाँ भाग राजा ग्रहण करता है। उस पुण्य से राजा को ईति - महामारी का भय नहीं होता और कोष में वृद्धि होती है। राजा सज्जन पुरुषों का पालन करता हुआ एवं दुष्टों का निग्रह (दण्डित) करता हुआ देव, दानव और मनुष्य सभी योनि के लोगों द्वारा पूजा जाता है।
लोभतः करमादत्ते प्रजाभ्यो यो महीधनः। क्षुद्रकर्मणि यो दण्डं लाति स नरकं व्रजेत्॥७॥ चौरान् धूर्तानिगृह्णन् यो भूपः सन्न्यायरीतितः। रोधनेन हि बन्धेन स वै स्वर्गमवाप्नुयात्॥८॥ प्रजोपरि सदा क्षान्तीरक्षणीया महीभुजा।
बालातुरातिवृद्धानां क्षन्तव्यं कठिनं वचः॥९॥ ___ जो राजा प्रजा से लोभवश दण्ड ग्रहण करता है और छोटे (अपराध) कार्यों में जो प्रजा से दण्ड लेता है वह नरक जाता है। जो राजा चोरों और धूर्तों को पकड़ता हुआ उत्तम न्याय रीति से कैद और बन्धन द्वारा (दण्डित करता है) वह अवश्य स्वर्ग प्राप्त करता है। राजा द्वारा प्रजा पर सदा क्षमाभाव रखना चाहिए। बालक, रोगी और वृद्धों के कर्कश वचनों को राजा को सहना चाहिए।
(वृ०) अथ प्रस्तुतमाह - अब प्रस्तुत विषय का निरूपण -
३. ४.
षष्टांशं भ १, भ २, प १, प २॥ पुण्य त भ १, भ २, प १, प २॥ तिभवंभ १, भ २, ०तिभवंको० प १,प२।। सुरासुरनृपादिभिः प १॥ भूयः भ १, भ २, प १, प २।। वंधेन सोवैस्वर्गम० भ १, भ २, प १॥