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सीमाभञ्जनपूर्वकम्।
उपक्षेत्रगृहाणां च स्वभूमौ मेलनं कर्त्ता दम्यते शतराजतैः॥११॥
सम्माननीय लोगों का अनादर करने वाले, भाई की पत्नी को पीड़ित करने वाले, वादा किये हुये धन को न देने वाले और घर का ताला तोड़ने वाले, समीपस्थ खेत और घर की सीमा तोड़ने के साथ उसे अपनी भूमि में सम्मिलित करने का अपराध करने वाले को सौ रजत मुद्राओं से दण्डित करना चाहिए।
स्वच्छन्दविधवा नारी विक्रोष्टा सज्जनैः सह । निष्कारणविरोधी च चाण्डालश्चोत्तमान्स्पृशन्॥१२॥ दैवपैत्र्यान्न भोजी यः शूद्रप्रव्रजितान्नभुक् । अयुक्तशपथं कुर्वन् अयोग्यो' योग्यकर्मकृत्॥१३॥ दण्ड्यो दशमितैरौप्यैर्भिन्नः कार्यः स्वजातितः । प्रायश्चित्तं विना नैव ज्ञातौ स्थाप्या बहिष्कृताः ॥ १४ ॥
स्वेच्छाचारिणी विधवा स्त्री, सज्जनों के साथ वैर रखने वाले, अकारण विरोध करने वाले, श्रेष्ठ जातियों को स्पर्श करने वाले चाण्डाल, देव और पितरों का अन्न खाने वाले, शूद्र और सन्यासी का अन्न खाने वाले, अनुचित शपथ लेने वाले और योग्य कार्य के अनुरूप योग्यता न रखते हुए भी कार्य करने वाले को दस मुद्राओं से दण्डित करना चाहिए एवं अपनी जाति से बहिष्कृत करना चाहिए। जाति से बहिष्कृत को बिना प्रायश्चित्त के जाति में सम्मिलित नहीं करना चाहिए।
क्षुद्रतिर्यग्वृषादीनामश्वानां
लघ्वर्हन्नीति
पुंस्त्वघातकः ।
गर्भदास्यपहारी च दण्ड्यो युग्मशतैः सदा ॥१५॥
क्षुद्र और तिर्यञ्च (पशु-पक्षी) प्राणी, सांड़ आदि तथा घोड़ों आदि का पुरुषत्व नाश करने वाले, गर्भ और दासी का हरण करने वाले को सदा दो सौ मुद्राओं से दण्डित करना चाहिए।
१.
२.
३.
भ्रातृमातृपितृस्वसृ' गुरुशिष्यसुहृत्सुतान्
I
प्रयोगेन वशीकुर्वन् दण्ड्यो रौप्यशतैर्भवेत्॥१६॥
भाई, माता, पिता, बहन, गुरु, शिष्य, मित्र और पुत्र को (मन्त्र के) प्रयोग से वश में करने वाले को सौ रजत मुद्राओं से दण्डित करना चाहिए ।
अयोग्ये भ १, भ २ प १, २ ॥
स्वस्भ २, स० प २ ।।
०गेण भ १, भ २, प १, प२॥