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साहसप्रकरणम्
तद्यथा
क्षेत्रोपकृतिहेतूनां वस्तूनां छेदने तथा । उदकबन्धविनाशे च प्रथमं साहसं स्मृतम्॥५॥
खेत के उपयोग के लिए ( निर्मित) वस्तुओं के काटने तथा पानी के बाँध को नष्ट करना प्रथम (कोटि) का साहस (अपराध) कहा गया है।
लोभेन बालकन्याया भूषणानि दिवानिशि । यश्चोरयति तत्कृत्ये दण्डो मध्यमसाहसम् ॥६॥
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लोभ से बालक और कन्या के आभूषणों को दिन-रात में चुराता है तो उस अपराध के लिए मध्यम अपराध का दण्ड है।
विषशस्त्रभयाद्यैर्यः परदारान्निषेवते । भूषणार्थं प्राणघातं करोत्युत्तमसाहसम् ॥७॥
विष, शस्त्र आदि का भय दिखाकर जो स्त्री का सेवन करता है, आभूषण के लिए वध करता है (वह) उत्तम अपराध करता है।
तत्र सर्वस्वहरणं तदङ्गछेदबन्धनम् वधः । कुर्याच्छिरसि मुद्राङ्कं पुरान्निर्वासनं नृपः ॥८॥
राजा द्वारा (उत्तम साहस की स्थिति में अपराधी का) सर्वस्व हरण कर, उसके अङ्ग का छेदन कर, उसका बन्धन कर और सिर पर मुद्रा अङ्कित कर नगर से निर्वासित करना चाहिये ।
परद्रव्यापहरणे तन्मूल्याद्विगुणो
निह्नवे तुर्यगुणितः प्रेरको दण्ड्यते
दूसरे के धन का चोरी करने पर उस (धन) के मूल्य से दुगुना दण्ड देना चाहिए। कपट (निह्नव) करने पर चार गुना और चोरी के लिए प्रेरित करने वाले पर सौ मुद्राओं का दण्ड देना चाहिए ।
पूज्यापमानकृद् सन्दिष्टार्थाप्रदाता'
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भ्रातृजायापीडनकार्यकृत् । गृहमुद्राविभेदकः ॥१०॥
च
दमः । शतैः ॥९॥
२ ॥
श्चौर० भ १, भ २ प १, तदंगछेदवंधनंवधः भ १, भ २ प १, प २ ॥
निन्हवो प २ ।।
दम्यते भ १, भ २, प १, ।।
प्रदाना च भ २ ॥