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लघ्वर्हन्नीति
देश (विशेष) के आचार आदि के भेद से न्याय में भिन्नता सम्भव है। जहाँ देश में जिस व्यवहार की प्रधानता है वहाँ वह (नियम) अधिक शक्ति- शाली है।
(वृ०) अथोपसंहारमाह - इसके पश्चात् व्यवहार प्रकरण का उपसंहार प्ररूपण -
इत्येवं वर्णितस्त्वत्र दायभागः समासतः।
यथाश्रुतं विशेषश्च ज्ञेयोऽर्हन्नीतिशास्त्रतः॥१४६॥ इस प्रकार यहाँ संक्षेप में दायभाग वर्णित किया गया। विशेष जानने की उत्सुकता हो तो बृहद् अर्हन्नीति शास्त्र से जानना चाहिए।
॥ दायभागप्रकरणं सम्पूर्णम्॥