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लघ्वर्हन्नीति
में पड़ोस के गृह स्वामियों को बुलाना चाहिए। बहुत से लोगों के समक्ष उनके द्वारा रक्तवस्त्र रूप असाधारण वेश धारण करने से लज्जा आने से वे असत्य कथन न करें यह तात्पर्य प्रतीत होता है । जहाँ ये भी न हों वहाँ वनवासी, बहेलिया, भील, चरवाहे आदि को बुलाकर और पूछकर वस्तुस्थिति का निर्णय करना चाहिये ।
( वृ०) अथ विगतचिह्नासु भूमिषु तन्निर्णयार्थमुपायमाह
भूमि अर्थात् क्षेत्रों के चिह्न मिट जाने पर उनकी सीमा के निर्णय के लिये
उपाय का कथन
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नद्यादिध्वस्तचिह्नेषु भूप्रदेशेषु वासतः । दिशाप्रमाणभोगेभ्यः कुर्याद्भूपो विनिश्चयम् ॥ १८ ॥
नदी आदि के कारण (सीमा) चिह्नों के नष्ट हो जाने पर भूमिप्रदेशों के स्थान से अमुक दिशाओं तथा स्वामित्व (के प्रमाण से ) राजा (सीमा का ) निश्चय करे ।
( वृ०) यथा अस्य क्षेत्रं ग्रामादमुकदिशीयदूरे चास्ति इत्यनुमानतः तद्भोगतश्च निश्चयो विधेयः ।
जैसे कि इस मनुष्य का खेत ग्राम से अमुक दिशा में इतना दूर इस अनुमान से उसके स्वामित्व का निश्चय करना चाहिए ।
अथैतत्कृत्ये कीदृशाः साक्षिणो योग्या इति दर्शयति
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इसके पश्चात् इस कृत्य (स्वामित्व का निश्चय करने) में किस प्रकार के साक्षी सक्षम हैं, यह प्ररूपित किया जाता है :
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प्रमाणमागमं चैव कालं भोगं च लक्षणम् ।
भूमिभागं तथा नाम जानीयुस्तेऽत्र साक्षिणः ॥१९॥
प्रमाण, आगमशास्त्र, काल, स्वामित्व, लक्षण, भूमि खण्ड तथा क्षेत्र का नाम (स्वामित्व ) यह साक्षियों से जानना चाहिए।
साक्षिणः सीम्नि प्रष्टव्या अर्थिप्रत्यार्थिनोः पुरः । पार्श्वगग्रामवृद्धानां धर्मपूर्वकम्॥२०॥
समक्षं समस्तास्ते हि पृष्टाश्च वदन्त्येकां गिरं यदि । तर्हि सीमां निबध्नीयात्तन्नामसहितां नृपः ॥२१॥
समीपस्थ ग्राम के वृद्धों के समक्ष धर्म (की शपथ) पूर्वक और प्रतिवादियों
के समक्ष सीमा के विषय में पूछना चाहिए। निश्चित रूप से यदि पूछने पर सभी एक ही बात कहते हैं तो राजा उनके नाम सहित सीमा तय करे ।