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लघ्वर्हन्नीति
( वृ०) अयं कामचारे दण्डः उक्तः । अकामचारे तु क्षेत्रविशेषेऽपवादं
दर्शयति
उपरोक्त दण्ड जान-बूझकर (दूसरे के खेत में पशु चराने पर कहा गया। अनजाने में (दूसरे के) खेत- विशेष में पशु चराने पर अपवाद का कथन करते हैंकामचारे त्वयं दण्डोऽकामे दोषो न कस्यचित् । यदि ग्रामविवीतान्तान्तं क्षेत्रं मार्गसमीपगम् ॥६॥
यदि (खेत में पशु) जान बूझकर चराये गये हों तो यह (उपरोक्त) दण्ड है। यदि जानबूझकर नहीं चराया गया है, भूमि चारागाह के छोर पर है और मार्ग के निकट है तो किसी (चरवाहे या पशु मालिक) का दोष नहीं है ।
(वृ०) अदण्ड्यानपशुविशेषानाह
दण्डित न किये जानें वाले विशेष पशुओं के विषय में कथन -
षण्डोत्सृष्टागन्तुकाश्च पशवः सूतिकादयः ।
दैवाश्च राजकीयाश्च मोच्या येषां न रक्षकः ॥७॥
सांड़, मुक्त पशु, नये आये हुए पशु और सद्यः जात (बछड़े) आदि, देवताओं के (नाम पर छोड़े गये) पशु और सरकारी पशुओं को मुक्त कर देना चाहिए (क्योंकि) इनका कोई रखवाला नहीं होता ।
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(वृ०) अथगोपकृत्यमाह
गोपालक के कर्त्तव्य के विषय में कथन
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प्रातर्गृहीता यावन्तः गवादिपशवो विकाले ।
अर्पणीया हि तावन्तो गोपेन गणनोत्तरम् ॥८॥
प्रातःकाल चराने हेतु जितने गाय आदि पशु (स्वामियों से ) ग्रहण किये गये हों सन्ध्याकाल में ग्वाले द्वारा गिनकर उतने पशु वापस देना चाहिए।
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सिंहाहिविद्युदाग्नैश्च मृतश्चौरैर्हतोऽपि वा ।
तस्य दण्डो न गोपस्य तत्प्रमादे स दण्डभाक्॥९॥
सिंह, सर्प, विद्युत् और अग्नि से मरे हुए अथवा चोरों द्वारा भी चुराये हुए (पशुओं के लिए) ग्वाले का अपराध नहीं है उस (ग्वाले) की असावधानी होने पर वह दण्ड का पात्र है।
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गृहीतवन्तः भ १, विद्युदयै भ १, भ २, प १,
१, २ ॥ २ ॥