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सीमाविवादप्रकरणम्
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(वृ०) अथ साक्ष्येऽनृतभाषिणां दण्डमाह - साक्ष्य में असत्य भाषण करने वाले (साक्षियों के) दण्ड के विषय में कथन
चेत्साक्षिणोऽनृतं ब्रूयुः सीमाकृत्ये कथञ्चन। सामन्ताः शतदण्ड्याः स्युः शेषाः शक्त्यनुसारतः॥२२॥ सीमा को लेकर यदि साक्षी कुछ झूठ बोलते हैं तो सामन्तों को सौ मुद्रा दण्ड करना चाहिए, शेष को (उनकी) सामर्थ्य के अनुसार दण्डित करना चाहिए।
(वृ०) कूटसाक्ष्ये प्रत्येकं दण्डो देय इति स्थितिः एष दण्डोऽज्ञानतोऽनृतभाषणेऽस्ति यस्तु जानननृतं लोभादिना भाषते स त्वितोऽपि विशेषदण्डेन दण्ड्य इति ज्ञेयम्।
झूठे साक्ष्य में प्रत्येक साक्षी को दण्ड देना चाहिए यह नियम है, यह दण्ड न जानते हुए असत्य भाषण करने वाले के लिये है। जो जानते हुए लोभादिवश असत्य भाषण करता है उसे तो इससे भी विशेष दण्ड से दण्डित करना, ऐसा जानना चाहिए।
अथ यत्र चिह्नज्ञातरो न सन्ति तत्र किं विधेयमित्याह -
सीमा-विवाद में जब सीमा-चिह्न जानने वाले न हों तब कैसे न्याय करना चाहिए, यह कथन -
चिह्नज्ञाता न कोऽप्यस्ति यत्र तत्र महीधनः।
आरामदेवतास्थाननिपानोद्यानवेश्मभिः ॥२३॥ वर्षाजलप्रवाहैश्च सीमां निर्णीय चाभितः।
कुर्याच्चिद्रं यथा न स्यात्तयोर्हि कलहः पुनः॥२४॥ जहाँ कोई भी सीमा-चिह्न का ज्ञाता नहीं है वहाँ राजा बाग, मन्दिर, जलाशय, उद्यान, आवास, वर्षाजल के प्रवाह से सीमा का निर्णय कर दोनों ओर से चिह्न लगाये जिससे पुनः कलह न हो।
जयपत्रं ततो देयं सीमासत्यार्थवादिने। भूमिप्रमाणवित्तेन दण्ड्योऽन्यो भवति ध्रुवम्॥२५॥ नाशयेद् भूमिलोभेन सीमाचिह्नानि यो नरः। दण्डनीयः स भूभुग्भीरौप्यैः पञ्चशतैः पणैः॥२६॥ अज्ञानेन प्रमादेन यो नाशयति तानि च।
स पणद्विशतं दण्ड्यो दीनश्चेमुनिमुष्टिभिः॥२७॥ शतदण्डाः भ १, भ २, प १, प २॥