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नहीं हो सका उसका उद्धार कर लाया हुआ धन, विद्या बल से प्राप्त किया हुआ, मित्र से प्राप्त अथवा विवाह में तथा शौर्य अथवा सेवा से प्राप्त किया हुआ जिस किसी द्वारा भी अर्जित किया गया है सब धन उसका ही होता है । कोई भी अन्य भाई उसमें हिस्सेदार नहीं होते ।
(वृ०) अथाविभाज्यस्त्रीधनमाह
इसके पश्चात् विभाजित न की जाने वाली स्त्री की सम्पत्ति के विषय में
कथन
विवाहकाले वा पश्चात् पित्रा मात्रा च बन्धुभिः । पितृव्यैश्च बृहच्छ्वास्रा पितृस्वस्रा तथा परैः ।। १३५ ॥ मातृस्वस्रादिभिर्दत्तं तथैव पतिनाऽपि यत् । भूषणांशुकपात्रादि तत्सर्वं स्त्रीधनं भवेत् ॥ १३६ ॥
लघ्वन्नति
विवाह के समय अथवा बाद में पिता, माता, भाई, चाचा, बड़ी सास, फूफी तथा अन्य मौसी आदि द्वारा प्रदत्त तथा पति के द्वारा भी जो आभूषण, वस्त्रादि दिया गया है वह सब धन स्त्री का हो ।
(वृ०) तदनेकविधमपि समासतः पञ्चविधं तथाहि -
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वह स्त्री - सम्पत्ति अनेक प्रकार की होते हुए भी संक्षेप में पाँच प्रकार की है, जैसे -
विवाहे यच्च पितृभ्यां धनमाभूषादिकम् । विप्राग्निसाक्षिकं दत्तं तदध्यग्निकृतं भवेत्॥१३७॥
विवाह के समय माता-पिता द्वारा ब्राह्मण तथा अग्नि को साक्षी कर जो धन- आभूषण आदि दिया गया है वह 'अध्यग्निकृत' स्त्रीधन होता है।
पुनः पितृगृहाद्वध्वानीतं यद्भूषणादिकम् । बन्धुभ्रातृसमक्षं स्यादध्याह्वनिकं च तत् ॥ १३८ ॥
पुनः पिता के घर से वधू द्वारा जो आभूषण आदि स्वजनों एवं भाइयों के समक्ष लाया गया हो वह अध्याह्ननिक स्त्रीधन होता है।
प्रीत्या स्नुषायै यद्दत्तं श्वश्र्वा श्वशुरेण च। मुखेक्षणांघ्रिनमने तद्धनं प्रीतिजं भवेत् ॥ १३९॥
पुत्रवधू को सास और श्वसुर द्वारा जो धन मुख देखने और चरण स्पर्श करने पर प्रीतिपूर्वक दिया जाता है वह 'प्रीतिज' स्त्रीधन कहा जाता है ।