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तृतीय अधिकार
सीमाविवादप्रकरणम्
योगीन्द्रं सच्चिदानन्दं स्वभावध्वस्तकल्मषम्।
प्रणिपत्य पुष्पदन्तं सीमानिर्णय उच्यते॥१॥ योगियों के स्वामी, सत्, चित् और आनन्द स्वरूप, नष्ट पाप वाले (तीर्थङ्कर) पुष्पदन्त का वन्दन कर सीमा-निर्णय प्रकरण का कथन किया जाता है।
(वृ०) पूर्वप्रकरणे दायभागो निरूपितः। तस्मिन् जाते भ्रातृणां सीमाविवादः स्यात्। अतस्तन्निर्णय उच्यते -
पूर्वप्रकरण में दायभाग का निरूपण किया गया। दायभाग के कारण भाइयों में सीमा विवाद होता है अतः उसके निर्णय के विषय में कहा जाता है -
तत्र सीमा भवेद्भूमिमर्यादा सा त्वनेकधा।
ग्रामक्षेत्रगृहारामनीवृत्प्रभृतिभेदतः ॥२॥ भूमि की मर्यादा सीमा होती है, वह ग्राम, क्षेत्र, गृह, उपवन, राज्य आदि भेद से अनेक प्रकार की (होती है)।
(वृ०) पुनः सा प्रत्येकं पञ्चधा - पुनः वह प्रत्येक (भूमि-सीमा) पाँच प्रकार की है -
पिछिला मिथिला राजलता स्याद्भामिनी तथा।
कासिका चेति भूसीमा पञ्चधा क्लेशनाशिनी॥३॥ दुःख का नाश करने वाली भूमि की सीमा - पिछिला, मिथिला, राजलता, भामिनी तथा कासिका - इस प्रकार पाँच प्रकार की होती है।
(वृ०) तत्र पिछिला नदीसरोवरादिजलाशयलक्षिता। नदी, तालाबादि जलाशय चिह्नित। मिथिला वृक्षादिचिह्निता।