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लघ्वर्हन्नीति
पड़ने पर अपने धन को दान करने, गिरवी रखने और विक्रय करने की अधिकारिणी
है।
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(वृ) यदुक्तं बृहन्नीतौ
जैसा कि बृहन्नीति में कहा गया है
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पइ मरणे तब्भज्जा दव्वस्साहि वा भवणेणूणं ।
पुत्तस्स य सब्भावे तहय अहावेवि विसाविहवा ॥१॥
पति की मृत्यु के पश्चात् उसकी पत्नी धन की स्वामिनी होती है । परन्तु पुत्र के रहने पर या प्रतिकूल आचरण करने पर इसके विपरीत होता है ।
जसा होइ सुसीला गुणढावस्स रायकरणिज्जे ।
विक्कय दाणादियं कुज्जा न हु कोवि पडिवंहो ॥ २ ॥
यदि वह विधवा सुशील व गुणवती है तो राज्य कार्य से विक्रय एवं दान कर सकती है। कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।
(वृ०) ननु यः कन्यावाग्दानं कृत्वा पुनस्तामन्यत्र लोभवशेन दद्यात्तस्य कः प्रतीकारः इत्याह
जो कन्या का वाग्दान (सगाई) करके पुनः उसे लालचवश दूसरे को दे देता है उसको क्या प्रतीकार दण्ड दिया जाय, यह कथन
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वाचा कन्यां प्रदत्वा चेत्पुनर्लोभेन तां हरेत् ।
स दण्ड्यो भूभृता दद्याद्वरस्य तद्धनं व्यये ॥ १२६ ॥
यदि कोई मनुष्य कन्या का वाग्दान (विवाह निश्चित) कर पुनः (धन के) लोभ से उसको वापस ले ले तो वह राजा द्वारा दण्डनीय है और दण्ड की राशि व्यय के बदले वर को दे दे।
कन्यामृतौ व्ययं शोध्यं देयं पश्चाच्च तद्धनम्। मातामहादिभिर्दत्तं तद्गृह्णन्ति
सहोदराः॥१२७॥
वाग्दत्ता कन्या की मृत्यु हो जाने पर (परस्पर) व्यय की गणना कर वर की और निकलने वाला धन (वर द्वारा) देय है। मातामह (नाना) आदि द्वारा दिया गया धन उस (कन्या के) भाई ग्रहण करते हैं ।
( वृ०) ननु जाते विभागे यदि कोऽप्यपलपति तन्निराकरणहेतूनाह
(भाइयों में) विभाजन हो जाने पर यदि कोई धन छिपाता है तो उसके समाधान के हेतुओं का कथन -