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लघ्वर्हन्नीति
(वृ०) सर्वैर्वणिग्भिर्हिरण्यरजताहिफेनकार्पासधान्यघृततैलगुडादीनां क्रयो विक्रयो वा क्रियते ।
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सभी वणिकों द्वारा सोना, चाँदी, अफीम, कपास, धान्य, घी, तेल, गुड़ आदि का क्रय अथवा विक्रय किया जाता है।
तज्जलाभालाभौ यथाद्रव्यं गृह्णन्ति । यदि तेषु द्रव्यदातैकोऽन्ये निर्धनाश्चेत्तदा सर्वे धनिद्रव्यमिषांशं स्वस्वद्रव्यान्निस्सार्यावशेषं यथाप्रतिज्ञं विभजेरन् तत्र विसंवादे उत्पन्नेऽभियोगे च राज्ञा दिव्यादिक्रियया विसंवादनिवृत्तिः क्रियते अतएवायं व्यवहारे गणितोऽस्तीति । एवं नटादिभिरामक्रीडाकारकनर्तकादिभिश्चापिसं भूयवृत्तिः क्रियते । तैरपि यथाप्रतिज्ञं यथाव्ययं लब्धद्रव्यं विभज्यते ।
वे उस (सम्मिलित) धन से हुए लाभ और हानि में अपने द्रव्य के अनुसार अंश ग्रहण करते हैं। यदि उन वणिकों में एक धनवान् और अन्य निर्धन हैं तो सभी अपने-अपने धन से धनी के मूलधन और ब्याज का अंश निकालकर शेष धन को प्रतिज्ञा के अनुसार विभाजित करें। उसमें विवाद उत्पन्न होने पर राजा द्वारा शपथ आदि क्रिया से विवाद को समाप्त किया जाता है इसलिये ही यह व्यवहार में गिना जाता है । उसी रूप में नट आदि सुन्दर मनोरञ्जन करने वाले नर्तक आदि भी समूह बनाकर जीविकोपार्जन करते हैं । उनके द्वारा भी प्रतिज्ञा के अनुसार खर्च के अनुपात में प्राप्त धन को विभाजित किया जाता है। राजाज्ञातो विरुद्धं यत्कृत्यं मुद्राङ्कनादिकम् । परद्रव्यापहरणमेतेष्वेकः करोति चेत्॥४॥ जाते विवादे दण्ड्याः स्युः सर्वेऽनुमतिदानतः । यथाद्रव्यं यथैश्वर्यं भूपेन न्यायवर्तिना ॥५ ॥
यदि उनमें से एक राजा की आज्ञा के विरुद्ध मुद्राङ्कन आदि और दूसरों के धन के हरण द्वारा कार्य करता है तो विवाद उत्पन्न होने पर वे सभी उस (अपराध) की स्वीकृति देने के कारण प्रत्येक की भागीदारी तथा सत्ता के अनुपात में न्यायप्रिय राजा के द्वारा दण्डनीय हैं।
यद्वा अपुत्रे निधनं प्राप्तेऽनेकैस्तज्जातिजैर्नरैः । रक्ष्यते तद्धनं धर्म' वत्सरावधि यत्नतः॥६॥
(इस व्यापार मण्डली में से किसी एक व्यापारी के) पुत्रहीन मृत्यु हो जाने पर उसके धन का अनेक स्वजातीय लोगों द्वारा दस वर्ष की अवधि तक यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए।
१.
वत्सरावाधि भ १, प १, वत्सएवाधि भ २, प२॥