________________
दायभागप्रकरणम्
विभाजन हुआ हो अथवा न हुआ हो सभी पुत्र पिता द्वारा लिये गये ऋण का बराबर भाग से भुगतान कर ही (सम्पत्ति में) हिस्से के अधिकारी होंगे।
(वृ०) ननु पितृविहितविषमभागस्य प्रमाणत्वाप्रमाणत्वे को हेतुरित्याह
पिता द्वारा आदिष्ट विषम भाग (ज्येष्ठ पुत्र को दोगुना हिस्सा) के प्रामाणिक होने और अप्रामाणिक होने के पीछे क्या कारण है? इसका कथन
धर्मतश्चेत् पिता कुर्यात्पुत्रान् विषमभागिनः।
प्रमाणं वैपरीत्ये तु तत्कृतस्याप्रमाणता॥१६॥ यदि धर्मपूर्वक पिता पुत्रों के अंश को असमान करे तो वह यथोचित है। प्रमाण के विपरीत अर्थात् अधर्मपूर्वक करने पर उसका कृत्य अप्रामाणिक है। ___ (वृ०) ननु कीदृशः पिता वैपरीत्येन भागं करोति येन तत्कृतो भागोऽप्रमाण स्यादित्याह -
कैसा पिता (सम्पत्ति में पुत्रों का सम से) विपरीत (विषम) भाग करता है जिसके द्वारा किया हुआ भाग प्रमाणभूत न माना जाय, इसका कथन -
व्यग्रचित्तोऽतिवृद्धश्च व्यभिचाररतस्तु यः। द्यूतादिव्यसनासक्तो महारोगसमन्वितः॥१७॥ उन्मत्तश्च तथा कुद्धः पक्षपातयुतः पिता।
नाधिकारी . भवेद्भागकरणे धर्मवर्जितः॥१८॥ व्याकुल चित्त, अत्यन्त वृद्ध, व्यभिचार में संलग्न, द्यूतादि व्यसनों में अनुरक्त, गम्भीर रोग से ग्रस्त, विक्षिप्त तथा क्रोधी, पक्षपात (एक में विशेष स्नेह) से युक्त पिता धर्म से विरहित है और (सम्पति का) विभाजन करने का अधिकारी नहीं है।
(वृ०) ननु विभागकालस्थासंस्कृतसंततिसंस्कारः केन कार्य इत्याह
विभाजन के समय जिस पुत्र का संस्कार न हुआ हो ऐसे पुत्र का संस्कार किसके द्वारा किया जाना चाहिए, इसका कथन -
असंस्कृतान्यपत्यानि संस्कृत्य भ्रातरः स्वयम्।
अवशिष्टं धनं सर्वे विभजेयुः परस्परम्॥१९॥ विभाजन के समय जिन पुत्रों का संस्कार नहीं हुआ है (अन्य) सभी भाई स्वयं उनका संस्कार कर शेष धन को आपस में विभाजित कर लें।
(वृ०) ननु लघिष्ठेषु भ्रातृषु ज्येष्ठस्य कियानधिकार इत्याह - कनिष्ठ भ्राताओं में ज्येष्ठ भाई का कितना अधिकार है, इसका कथन -