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लघ्वर्हन्नीति
पिता की मृत्यु के पश्चात् पुत्रों द्वारा अपनी माता का भाग सम्पत्ति का आधा हिस्सा देना चाहिए कारण कि समस्त लोक व्यवहार माता ही सम्पन्न करती है। उस (माता) की मृत्यु के पश्चात् वे सभी पुत्र समान अंश के भागी हैं।
(वृ०) पितृमरणानन्तरं विभागकरणोद्यतैः सवर्णाया ज्येष्ठामातुविशेषाधिको भागः कार्यो यतः पूज्यत्वेन ज्ञातिव्यवहारादिकार्ये तस्या एवाधिकारस्तन्मरणे च दुहितृदौहित्रकस्य चाभावे तद्र्व्यसमांशभागिनः पुत्राः भवन्तीति।
पिता की मृत्यु के पश्चात् विभाजन के लिए उत्सुक पुत्रों को चाहिए कि वे स्वजातीय ज्येष्ठ माता का विशेष अधिक भाग करें क्योंकि पूज्य होने के कारण जाति व्यवहार आदि कार्यों में उसका ही एकाधिकार है। उसके मरने पर पुत्री या दौहित्र (पुत्री के पुत्र) के अभाव में उसकी सम्पत्ति में पुत्र बराबर के हिस्सेदार होते
ननु युग्मजातयोः पुत्रयोः कस्य ज्येष्ठत्वमिति दर्शयन्नाह - जुड़वा पुत्र उत्पन्न होने पर किस शिशु की ज्येष्ठता हो, यह कथन -
पुत्रयुग्मे समुत्पन्ने यस्य प्रथमनिर्गमः।
तस्यैव ज्येष्ठता ज्ञेया इत्युक्तं जिनशासने॥२८॥ जुड़वा पुत्र उत्पन्न होने पर जिस शिशु का पहले जन्म हुआ हो उसकी ही ज्येष्ठता जाननी चाहिए ऐसा जिनशासन में कहा गया है।
(वृ०) ननु यस्य सुताभवनान्तरं पुत्रजन्म स्यात् तत्र कस्य ज्येष्ठत्वमितिसूचयन्नाह
पुत्री होने के पश्चात् पुत्र उत्पन्न हुआ हो वहाँ किसका ज्येष्ठत्व यह सूचित करते हुए कथन -
दुहिता पूर्वमुत्पन्ना सुतः पश्चाद्भवेद्यदि।
पुत्रस्य ज्येष्ठता तत्र कन्यायाः न कदाचन॥२९॥ ___ यदि पहले पुत्री उत्पन्न हुई हो पश्चात् पुत्र उत्पन्न हुआ हो तो सदैव पुत्र की ही ज्येष्ठता होगी कभी कन्या की नहीं।
(वृ०) ननु यस्यैकैव कन्या नापरा संततिस्तद्रव्यस्वामी कः स्यादित्यावेदयन्नाह
यदि जिसकी एक ही कन्या हो और दूसरी सन्तान न हो उसकी सम्पत्ति का स्वामी कौन हो यह निवेदन करते हुए कथन -