________________
१०८
लघ्वर्हन्नीति
परिव्रज्या गृहीतैकेनाविभक्तेषु बन्धुषु।
विभागकाले तद्भागं तत्पत्नी लातुमर्हति॥८९॥ ___ भाइयों में सम्पत्ति का विभाजन न हुआ हो और एक भाई दीक्षा ग्रहण कर ले तो विभाजन के समय उसका हिस्सा ग्रहण करने की अधिकारिणी उसकी पत्नी है।
(वृ०) एवमेव तत्पुत्रोऽपि मात्रभावे भागग्रहणेऽधिकारीति ज्ञेयम्। __ इसी प्रकार उस (दीक्षा ग्रहण करने वाले) का पुत्र भी माता के न होने (मृत्यु हो जाने) पर हिस्सा (पिता की सम्पत्ति) ग्रहण करने का अधिकारी है - ऐसा जानना चाहिए। __ ननु विभक्तेषु भ्रातृषु यदि कोऽपि विपक्षः प्रव्रजितो वा तदा तद्धनं के गृह्णन्तीत्याह
भाइयों में विभाजन हो जाने पर यदि कोई भाई मृत्यु को प्राप्त हुआ हो अथवा दीक्षा ग्रहण कर लिया हो तो उसकी सम्पत्ति कौन ग्रहण करेगा, यह कथन
पुत्रस्त्रीवर्जितः कोऽपि मृतः प्रव्रजितोऽथवा।
सर्वे तद्भातरस्तज्जा गृह्णीयुस्तद्धनं समम्॥९०॥ पत्नी और पुत्र से रहित दीक्षा ग्रहण कर लेने वाले अथवा मृत पुरुष का धन उसके सभी भाई एवं भतीजे द्वारा बराबर-बराबर ग्रहण किया जाना चाहिये।
(वृ०) ननु भ्रातृषून्मत्तत्वादिदोषाप्तस्यापि किं भागार्हत्वमित्याह।
भाइयों में से विक्षिप्त या पागलपन आदि दोष से युक्त भाई भी क्या सम्पत्ति में हिस्से के योग्य है, यह कथन -
उन्मत्तो व्याधितः पङ्गः षण्डोऽन्धःपतितो जडः। सस्ताङ्गः पितृविद्वेषी मुमूर्षुर्बधिरस्तथा।।९१॥ मूकश्च मातृविद्वेषी महाक्रोधो निरिन्द्रियः।
दोषत्वेन न भागार्हाः पोषणीयाः स्वभ्रातृभिः॥१२॥ पागल, रोगग्रस्त, लंगड़ा, नपुंसक, अन्धा, आचारभ्रष्ट, मूर्ख, शिथिल अङ्गों वाला, पिता से शत्रुता रखने वाला, मरने की इच्छा वाला, गूंगा, माता से वैर रखने वाला, महाक्रोधी, विकलाङ्ग दोष वाला (पिता की सम्पत्ति में) हिस्से का अधिकारी नहीं है। उसके भाइयों द्वारा उसका पोषण किया जाना चाहिए। १. गृहीतृ भ १, भ २, प १, प २।।