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दायभागप्रकरणम्
(वृ०) यदि पित्रोर्धनं पुत्रैर्गृहीतमनवशिष्टं वा तदा विभक्तैर्धातृभिः भगिनीविवाह उत्कर्षतः स्वांशात्तुरीयांशमेकीकृत्य कार्यः इति निष्कर्षः।
यदि पिता की सम्पत्ति पुत्रों द्वारा ग्रहण कर ली गई है अथवा अवशेष न रही हो तो विभक्त भाइयों द्वारा अपने हिस्से का अधिकतम चतुर्थ भाग मिलाकर बहन का विवाह करना चाहिये।
ननु कन्याया अपि दाये भागोऽस्ति न वेत्याशङ्कायामाह
कन्या का दाय में भाग है अथवा नहीं इस शङ्का के समाधान के विषय में कथन
विवाहिता च या कन्या तस्याः भागो न कर्हिचित्।
पित्रा प्रीत्या च यद्दत्तं तदेवास्याः धनं भवेत्॥२५॥ पिता की सम्पत्ति में विवाहिता कन्या का कोई हिस्सा नहीं है। पिता द्वारा स्नेहपूर्वक जो दिया गया है वही उसका धन होता है।
(वृ०) प्रीत्या च इत्यत्र चकारेण विवाहादिकालजन्यनैमित्तिकदानमपि समुच्चीयते। ननु विभागसमये भर्जा कियतांशेनस्वसवर्णाः स्त्रियो भाज्या इत्याह
यहाँ इस श्लोक में 'प्रीत्या च' में चकार से विवाह आदि के समय किया गया नैमित्तिक दान का अभिप्राय लिया जाता है। सम्पत्ति-विभाजन के समय स्वामी द्वारा स्वजातीय स्त्रियों का कितना भाग करना चाहिए, इसका कथन -
यावतांशेन तनया विभक्ता जनकेन तु।
तावतैव विभागेन युक्ताः कार्या निजस्त्रियः॥२६॥ पिता द्वारा जिस प्रमाण में पुत्रों में (सम्पत्ति) विभक्त की गई है उसी प्रमाण से अपनी स्त्रियों को भी सम्पत्ति देनी चाहिए।
(वृ०) ननु च पितृमरणोत्तरकालिकपुत्रकृतविभागावसरे मातुर्भागः कीदृशः स्यात् तन्मृतौ च तद्धनस्य कः स्वामीत्याकांक्षायामाह -
पिता की मृत्यु के पश्चात् पुत्रों द्वारा किये गये सम्पत्ति के विभाजन के समय माता का क्या हिस्सा होगा। स्वामी की मृत्यु के पश्चात् उसके धन का स्वामी कौन होगा, इसका कथन -
पितुरूा निजाम्बायाः पुत्रैर्भागश्च सार्धकः।
लौकिकव्यवहारार्थं तन्मृतौ ते समांशिनः॥२७॥ १. यद्दतं भ १, भ २, प १॥
श्लोक सं० २५ प २ में अनुपलब्ध।। साधकः भ १, भ २, प १, प २॥
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