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दायभागप्रकरणम्
अब शूद्र द्वारा अविवाहिता दासी से उत्पन्न पुत्र का किस प्रकार हिस्सा हो
यह बताया
दास्यां जातोऽपि शूद्रेण भागभाक् पितुरिच्छया ।
मृते तातेऽर्द्धभागी स्यादूढाजा भ्रातृभागतः ॥४४॥
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शूद्र (पिता) से दासी से उत्पन्न पुत्र भी पिता के जीवित रहने पर पिता की इच्छा से सम्पत्ति में हिस्से का अधिकारी होता है, पिता की मृत्यु हो जाने पर विवाहिता स्त्री से उत्पन्न हुए पुत्र के भाग में से उसे आधा भाग प्राप्त हो ।
( वृ०) पितरि जीवति तदिच्छया भागो मृते च विवाहितपत्नीपुत्रापेक्षया दासेरोऽर्धभागं प्राप्नोति । सर्वदायादा भावे दौहित्राद्यभावे स एव सर्वस्वामीत्यर्थः ।
पिता के जीवित होने पर उसकी इच्छा से हिस्सा मिलना चाहिए और मृत्यु हो जाने पर विवाहिता पत्नी से उत्पन्न पुत्र की तुलना में दासीपुत्र को आधा भाग मिलना चाहिए। सभी सम्बन्धियों तथा दौहित्र आदि का अभाव होने पर दासीपुत्र ही समस्त सम्पत्ति का स्वामी होता है ।
ननु कश्चित् सवधूकस्सपुत्रोऽपुत्रो वात्युग्रव्याधिग्रसितः स्वजीवनाशां विमुच्य स्वकीयधनरक्षार्थं चेदन्यमधिकारिणं करोति स कीदृशो योग्यः स्यादित्याह
कोई पत्नी युक्त व्यक्ति पुत्र सहित अथवा पुत्ररहित, भयङ्कर व्याधि से पीड़ित अपने जीवन की आशा छोड़कर, अपने धन की रक्षा के लिए दूसरे को अधिकारी बनाता है वह किस प्रकार अधिकारी है, इसका कथन
जीवनाशाविनिर्मुक्तः
पुत्रयुक्तोऽथवापरः । सपत्नीकः स्वरक्षार्थमधिकारिपदे नरम्॥४५॥ दत्वा लेखं स्वनामाङ्कं राजाज्ञासाक्षिसंयुतम् ।
कुलीनं धनिनं मान्यं स्थापयेत्स्त्रीमनोनुगम् ॥ ४६ ॥
जीवन की आशा क्षीण हो जाने पर पुत्रवान् अथवा पुत्ररहित स्वामी, पत्नी 'जीवित होने पर सम्पत्ति की रक्षा के लिए कुलीन, धनवान्, सम्मानित और स्त्री के मनोनुकूल व्यवहार करने वाले पुरुष को अधिकारी पद पर स्थापित करावे, राजाज्ञा के साक्ष्य से युक्त अपने नाम का लेख उसे सौंपे।
( वृ०) अत्र नर इति जातिविशिष्टशब्दोक्तचाधिकारबाहुल्यमपि सूचितम् । इस श्लोक में 'नर' इस जाति विशिष्ट एकवचनात्मक शब्द से अनेक अधिकारियों का भी अभिप्राय सूचित किया गया है।
ननु स्वामिनि मृते स पुरुषोऽधिकारं प्राप्य धनं विनाशयेद्भक्षयेद्वाथवा विधवायाः प्रतिकूलतां भजेत् तदा किं कर्त्तव्यमित्याह -