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लघ्वर्हन्नीति
उस राजाज्ञा पत्र को लेकर वहाँ (प्रतिवादी) के पास जाय और उसकी योग्यता और अयोग्यता देखकर लाने के योग्य होने पर उसे लेकर आये। (वृ०) के अनाहूया इत्याह - कौन बुलाने योग्य नहीं है, इसका कथन
अशक्ताः स्थविरा बाला कुलजा हीनपक्षकाः। अज्ञातस्वामिनो क्रूरा राज्यकार्यसमाकुलाः॥२२॥ आवश्यकक्रियोद्युक्ता उन्मत्ता भूतडाकिनी। गृहीता वातपितोग्रा अनाहूयाः स्मृता बुधैः॥२३॥ देशकालानुसारेण कृत्यसाधनदूषणे।
ज्ञात्वा यानैरशक्तादीन् बला दाह्वाययेन्नृपः॥२४॥ अशक्त, वृद्ध, बाल, कुलीन, विकलाङ्ग, जिनका कोई स्वामी न हो, क्रूर, राज्यकार्य में व्यस्त, आवश्यक कार्य में संलग्न, उन्मत्त, भूत-डाकिनी आदि से पीड़ित, उग्र वायु-पित्त रोग से पीड़ित को विद्वानों द्वारा न बुलाने योग्य कहा गया है। देश और काल के अनुसार न्याय कार्य के सम्पादन में दोष को जानकर अशक्त आदि को राजा वाहन आदि के द्वारा बलपूर्वक बुलवाये।
(वृ०) एतद्रीत्या दूतेन प्रत्यर्थिन्यानीते किं तत्पितृभ्रानादयोऽपि तत्र वक्तुं शक्नुवन्ति न वेत्याह -
उपर्युक्त रीति से दूत द्वारा प्रतिवादियों को (बुलाकर) लाने पर उसके पिता, भाई आदि भी वहाँ बोलने में समर्थ हैं या नहीं इसके विषय में कथन
पिता भ्राता न पौत्रो वा न सुतो न नियोगकृत्।
व्यवहारेषु शक्तः स्याद्वक्तुं दण्ड्यो हि विबुवन्॥२५॥ व्यवहार (वाद की सुनवाई) में न पिता, न भाई, न पौत्र अथवा न ही पुत्र एवं न मुक्तारनामा से युक्त व्यक्ति बोलने में समर्थ है। निश्चित रूप से बोलने पर दण्डित करने योग्य है।
(वृ०) स्वाम्यभावे तु दत्तपूर्णाधिकारत्वेन सर्वे वक्तुं शक्नुवन्ति इति स्थितिः।
ततोऽधिकारी अर्थिदत्तं प्रतिज्ञापत्रमुत्तरं गृहीतुं प्रत्यर्थिने दर्शयेत् तदभिप्रायं निवेदयेच्च -
स्वामी की अनुपस्थिति में (स्वामी द्वारा) दिये गये पूर्ण अधिकार से सभी बोल सकते हैं - यह स्थिति है। तत्पश्चात् अधिकारी उत्तर प्राप्त करने के लिए १. ०दाह्वानयेन्नृपः भ १, भ २, प १, प २॥