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व्यवहारविधिप्रकरणम्
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वादी द्वारा प्रदत्त वादपत्र को प्रतिवादी को दिखाये। प्रतिवादी को उस वादपत्र का अभिप्राय भी बताये।
कुलजातिवयोवर्षमासपक्षदिनान्वितम् ।
अर्थिनावेदितं यच्च तत्सर्वं हि निवेदयेत्॥२६॥ कुल, जाति, अवस्था, वर्ष, मास, पक्ष, दिन सहित वादी द्वारा जो भी निवेदित किया गया है वह सब निवेदित करना चाहिए।
(वृ०) स च तत्पत्रं सुतरामालोच्य शोधनार्थमवधिं याचेत शोधनं च यावदुत्तरदर्शनं ततः प्राड्विवाको यथाकृत्यमवधिं देयात्।
और वह प्रतिवादी उस वादपत्र को भलीभाँति देखकर संशोधन हेतु समय की माँग करे। न्यायाधीश कार्य के अनुसार शोधन से लेकर उत्तर देने हेतु समय की निश्चित अवधि प्रदान करे।
ऋणाद्युत्तरदाने चावधौ देयादिनत्रयम्।
भूयो विशेषकृत्ये तु पक्षं नातःपरं दिशेत्॥२७॥ ऋण आदि सम्बन्धी विवाद में उत्तर देने के लिए (प्रतिवादी को) तीन दिन की अवधि देनी चाहिए। राजा विशेष वाद में एक पक्ष (पन्द्रह दिन) का समय दे . इससे अधिक समय न दे।
गोर्वधे ताडने स्तेये पारुष्ये साहसेऽपि वा।
स्त्रीचरित्रे न कालोऽस्ति गृह्णीयादुत्तरं लघु॥२८॥ ____ गोवध, मारपीट, चोरी, वाग्युद्ध अथवा जघन्य अपराध, स्त्री के चरित्र सम्बन्धी वाद में (उत्तर देने के लिए) समय नहीं दिया जाना चाहिए, शीघ्र उत्तर लिया जाना चाहिए।
शोधयेद्वादिपत्रं च यावन्नोत्तरलेखनम्।
लिखिते तु यथानीति निवृत्तं शोधनं भवेत्॥२९॥ जब तक प्रतिवादी द्वारा उत्तर नहीं लिखा गया है तब तक वह वादी के पत्र का निरीक्षण कर सकता है परन्तु उत्तर लिख लिये जाने पर नीति के अनुसार निरीक्षण से विरत हो जाय।
(वृ०) ऋणादिव्यवहारे उत्तमर्णनिरूपितविषयशोधनपूर्वकोत्तरदानार्थं प्राड्विवाको दिनत्रयावधिं देयात्। विशेषकृत्ये तु भूपः पक्षकमितावधिं देयात्। अतः परं न दिशेत्। गोर्वधे मारणे ताडने यष्ट्यादिप्रहारे स्तेये चौर्ये पारुष्ये क्रोधेन कटुवाक्यादिकथने साहसे विषशस्त्रादि- कृतप्राणघाते स्त्रिया दुश्चरिते