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ऋणादानप्रकरणम्
तीन, चार और पाँच प्रतिशत ब्याज पर उपरोक्त रीति के अनुसार ऋण प्रदान करे। निर्धारित ब्याज प्रत्येक माह वृद्धि के साथ ग्रहण करना चाहिए। वह ब्याज - वृद्धि (कर्ज लेने वाले की ) क्षमता के अनुसार चार प्रकार की कही गई हैं चक्रवृद्धि, द्वितीया कालिका, तृतीया कारिता और चौथी कायिका कही गई है। इन चारों को सब प्रकार से सम्पत्ति में वृद्धि करने वाली जानना चाहिए ।
प्रथमा
मासपक्षदिनेष्वेतद्रजतानामिमामहम्
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वृद्धिं दास्यामि नियतां कालिका सा स्मृता बुधैः ॥ १२ ॥
आप्रतिज्ञान्तमेकापि न दत्ता चेद्वराटिका । तदैकीकृत्य तां वृद्धिं तद्वृद्धिः प्रथमा मता ॥ १९ ॥
नियत अवधि तक यदि (ब्याज राशि की) एक कौड़ी भी चुकाई नहीं गई हो तो उस (ब्याजराशि और मूल राशि) को जोड़कर उस (राशि) का ब्याज और पुनः ब्याज के ब्याज की गणना (प्रथम वृद्धि अर्थात् चक्रवृद्धि) कहा जाता है।
'मासकृतप्रतिज्ञायां नो चेद्दास्यामि किञ्चन ।
दास्यामि द्विगुणान् रौप्यानिति वृद्धिस्तु कारिता ॥ १३ ॥
नियत मास, पक्ष और दिनों में अमुक निश्चित धनराशि ब्याज के रूप में दूंगा, यह वृद्धि विद्वानों द्वारा कालिका वृद्धि कही गयी है।
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कृतमासप्रतिज्ञोऽपि मिषं दातुमशक्नुयात् ।
देहेन सेवां धनिनो वृद्धिः सा कायिका मता ॥ १४॥
नियत की गई मासावधि में यदि कभी राशि नहीं दूँगा तो उस मूल राशि का दुगुना दूँगा - इस प्रकार की वृद्धि कारिता कही जायेगी।.
१.
माषकृत भ १, भ २, प १, प २ ॥
२. कृतमाष० भ १, भ २, प १, प २ ॥
३.
गृहीत्वा प १ प २ ॥
मासावधि नियत करने के पश्चात् भी ब्याज देने में समर्थ न हो पाने पर ऋणी द्वारा धनी की शरीर से सेवा रूप वृद्धि कायिका कही गई है।
( वृ०) यहणं गृहीत्वा देशान्तरं गच्छेत्तद्रीतिमाह
कोई ऋण लेकर विदेश चला जाय तो क्या करना चाहिए, इसका कथन - गृहीत्वार्णं ऋणी गच्छेद्देशाद्देशान्तरं तदा ।
आगतेऽब्दे मासवृद्धिरस्य द्विगुणा स्यादितिस्थितिः ॥ १५ ॥
यदि ऋण लेने वाला ऋण लेकर इस देश से दूसरे देश चला जाय तब
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