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लघ्वर्हनीति
अर्थ में पालन करने वाले हों। (साक्षीगण के) पहले स्नान एवं पूजा कर लेने के पश्चात् राजा (उनको) शपथ दिलाकर, सत्कार कर, विधि के अनुसार उस वाद के सम्बन्ध में पूछे।
विप्रं यज्ञोपवीतेन क्षत्रियं च कृपाणतः।
गोदेवब्राह्मणैर्वैश्यं शपेच्छूद्रं तु पातकैः॥४६॥ विप्र को यज्ञोपवीत की और क्षत्रिय को कृपाण की, वैश्य को गो, देव और ब्राह्मण की तथा शूद्र को 'पाप लगने की सौगन्ध दिलानी चाहिए।
स्त्रीबालगर्भधाते यज्जीवानामग्निपातने।
पापं तत्सर्वमाप्नोति यः साक्ष्यमनृतं वदेत्॥४७॥ स्त्री-हत्या, शिशु-हत्या, भ्रूण-हत्या और प्राणियों को अग्नि में गिराने का जो पान है असत्य साक्ष्य देने वाला उस सम्पूर्ण पाप को प्राप्त करता है।
दानपूजादिर्ज पुण्यमसत्येन विनश्यति।
ज्ञात्वेति साधनं बूयुः साक्षिणस्ते यथायथम्॥४८॥ दान और पूजा से उत्पन्न पुण्य असत्य के कारण नष्ट हो जाता है - यह जानकर साक्षियों को साधन (वाद के सम्बन्ध में) तथ्य के अनुरूप कथन करना चाहिये।
(वृ०) कीदृशाः साक्षिणो मान्या भवन्तीत्याह - कैसे साक्षी स्वीकार करने योग्य हैं, इसका कथन -
यथार्थवादी निर्लोभः क्षमाधर्मपरायणः। निर्मोही निर्भयस्त्यागी साक्षी मान्य उदाहृतः॥४९॥ यथार्थ भाषी, लोभ रहित, क्षमाधर्म के पालन में निपुण, निर्मोही, निर्भय और त्यागी साक्षी स्वीकार करने योग्य हैं।
लोभी गद्गदवाग् दुष्टो रुद्धकण्ठो विरुद्धवाक्।
क्रोधी व्यसनसेवी च साक्ष्यमान्यः स्मृतो बुधैः॥५०॥ लोभी, गद्गद (अस्पष्ट) वाणी बोलने वाले, दुष्ट, रुद्ध कण्ठ वाले, विरुद्ध भाषी, क्रोधी, व्यसनी आदि (कुलक्षण युक्त व्यक्ति), विद्वानों द्वारा साक्षी रूप में अस्वीकार्य कहे गये हैं।
(वृ०) वादिसाक्ष्यभवनान्तरं प्रत्यर्थिसाक्षिणो बुयुरित्याह
वादी के साक्षियों का साक्ष्य होने के बाद प्रतिवादियों का साक्ष्य हो, इसका कथन