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लघ्वहेन्नीति
असाध्य (जिस वाद का समाधान न हो सके), अप्रसिद्ध (अस्तित्व विहीन) वस्तु से सम्बन्धित वाद विरुद्ध, निष्प्रयोजन, निरर्थक, निराबाध - इस प्रकार के वाद पक्षाभास हैं (अधिकारियों द्वारा) इनके श्रवण का त्याग करना चाहिए।
(वृ०) यथा अनेन मां दृष्ट्वा निष्ठीवनं कृतमित्यसाध्यम्।
जैसे मुझे देखकर इसने थूका यह असाध्य वाद है। • मद्गृहस्थं खपुष्यं गृहीत्वायमगमत्तदहं याचयामि परं नो ददाती
त्यप्रसिद्धम्। मेरे घर में स्थित आकाश-पुष्प लेकर चला गया उसे मैं माँगता हूँ पर वह नहीं देता है, यह अप्रसिद्ध वाद है।
अनेनाहं शप्त इतिविरुद्धम्। इसके द्वारा मेरा सौगन्ध लिया गया यह विरुद्ध है। मत्पित्रा पूर्वमस्याधिकारः कृतोऽस्ति भूयो मां न ददाति इति निष्प्रयोजनम्।
मेरे पिता द्वारा पूर्व में इसके अधिकार में किया गया पुनः मुझे नहीं देता है यह निष्प्रयोजन है।
यथा तथा प्रलपनं निरर्थकम्। जैसा-तैसा प्रलाप निरर्थक है। मद्गृहस्थदीपप्रकाशेनायं स्वगृहकार्यं करोति इति निराबाधम्।
मेरे घर के दीपक के प्रकाश से यह अपने घर का कार्य करता है, यह निराबाध है।
एतादृशं पक्षाभासं वर्जयेत् न श्रृणुयादित्यार्थः। इन पक्षाभासों का त्याग करना चाहिए, नहीं सुनना चाहिए यह अभिप्राय है।
तथा चानेकव्यवहार विषयगर्भिता विज्ञप्तिरपि न श्रोतव्या। अनेक विषयों से युक्त आवेदन की भी सुनवाई नहीं करनी चाहिए। किन्तु प्रत्येकविषयगर्भिता इत्याह -
किन्तु अलग-अलग विषयों से सम्बन्धित (आवेदन की सुनवाई करनी चाहिए), इसका कथन -
विज्ञप्तिर्नहि श्रोतव्या क्रियाभेदसमन्विता।
अनेकविषयाकीर्णा श्रूयेताथाधिकारिभिः॥१७॥ १. प्रतिकरणम् भ १, भ २, प १, प २।।
नाथा० भ १, भ २, प १, प २॥
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