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दण्डनीतिप्रकरणम्
( वृ०) यद्देहावयवजनितोऽपराधस्तत्रैव निग्रहः करणीयः ।
शरीर के जिस अङ्ग से अपराध किया गया हो उसी अङ्ग को दण्डित करना
चाहिए।
योऽसमर्थो धनं दातुं कारागारे निधाय तम् ।
कारयित्वा स्वकं कर्म धनदण्डं विमोचयेत् ॥ २५ ॥
जो धन देने में असमर्थ है उसे कारागार में रखकर अपना (राजकीय) कार्य कराकर धनदण्ड छोड़ देना चाहिए।
उत्तमो दण्ड इत्युक्तः सर्वस्वहरणं पुरान्निर्वासनं चाङ्गछेदनं चाङ्कनं
( वृ०) अथ विशेषमाह
दण्ड के विषय में विशेष कथन
उत्तम दण्ड इस प्रकार कहे गये हैं - सर्वस्वहरण, वध, नगर से निर्वासन, अङ्गच्छेदन तथा अङ्कन (शरीर पर दाग ) ।
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वधः । तथा ॥ २६ ॥
ललाटेऽङ्कोऽभिशप्तस्य खरे चारोपणं परम् । सुरापाने पताका स्याद्भगस्तु गुरुतल्पगे ॥ २७ ॥ २श्वपदाङ्कः स्तैन्यकृत्ये तथाकारानिवेशनम् । ब्रह्महत्याकारकस्य शिरोमुण्डनमेव च॥२८॥ कारयित्वा च सर्वस्वमपहृत्य - खरोपरि । समारोप्याथ नगरात्प्रवासनमिति स्थितिः ॥ २९ ॥
निन्दक के मस्तक को चिह्नित कर बाद में गधे पर बैठाये, मदिरा सेवन करने वाले के (मस्तक पर ) पताका का चिह्न, गुरुपत्नी के साथ शय्या पर सोने वाले के (मस्तक पर ) योनि- चिह्न, चोरी करने पर (मस्तक पर ) कुत्ते का चिह्न तथा कारागार में रखना, ब्राह्मण की हत्या करने वाले का सिर मुण्डन कराकर सर्वस्व अपहृत कर, गधे पर बैठाकर नगर से निष्कासन यह स्थिति है।
सत्यं जल्पति यो लिङ्गं नष्टप्राप्तस्य वस्तुनः । नृपेण तस्मै तद्देयं नो चेत्तत्समदण्डभाक् ॥३०॥
१.
०भिशस्तस्य भ १, भ २ प १, प २ ॥
२. वयदाङ्क भ १, वपदाङ्क भ २, प १, प २ ॥
जो (अपनी खोई हुई वस्तु की पहचान सत्य बताता है राजा द्वारा उसे वह (वस्तु) दे देनी चाहिए। यदि (सत्य) नहीं बताता है तो दण्ड का पात्र है ।