Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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( १६ ) सप्तम व अन्तिम खण्ड में आंग्ल भाषा में प्राप्त विभिन्न आंग्लभाषा में होने के फलस्वरूप पाठकीय सुविधा को ध्यान
किये हैं ।
ग्रन्थ के अन्त में परिशिष्ट के रूप में कतिपय विशिष्ट सेवाओं में संलग्न भूतपूर्व छात्रों के परिचय (जो प्राप्त हो सके हैं) प्रस्तुत किये गये हैं। साथ ही दानदाताओं, ग्राहकों आदि की नामावलियां भी दी गई है।
ग्रन्थ के प्रत्येक खण्ड में लेख चयन की दृष्टि से संकीर्ण दृष्टिकोण की अपेक्षा व्यापक दृष्टिकोण अपनाया गया है । लेखों में अभिव्यक्त भाव विचार व विषय वस्तु में उदात्त स्वरूप को प्राथमिकता दी गई है। निंदारपक सामग्री से बचने का प्रयास किया गया है, विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के खण्डन - मण्डन की दूषित प्रवृति को प्रश्रय नहीं दिया गया है । ग्रन्थ का कलेवर बड़ा इस कारण हो गया है कि ग्रन्थ की सामग्री संकलन प्रयास में जो सामग्री प्राप्त हुई, उसमें से कोई स्तरीय सामग्री छूट नहीं पाये और अधिक से अधिक विद्वानों का प्रतिनिधित्व हो सके ।
विषयों से सम्बन्धित लेख संकलित है, किन्तु में रखते हुए इन्हें अलग खण्ड में प्रस्तुत
इस अभिनन्दन ग्रन्थ की सामग्री संकलन व सम्पादन का गुरुतर दायित्व मुझे सोंपा गया, यह कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा सार्वजनिक अभिनन्दन समारोह एवं ग्रन्थ प्रकाशन समिति, राणावास तथा उसके प्रमुख संयोजक व अध्यक्ष श्रद्धय प्रो० बी० एल० धाकड़ साहब का मेरे प्रति स्नेह विश्वास एवं अनुराग को प्रकट करता है, जिसके लिये मैं समिति व प्रो० धाकड़ साहब का हृदय से अत्यन्त आभारी हूँ ।
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ मानव हितकारी संघ द्वारा संचालित श्री सुमति शिक्षा सदन का एक भूतपूर्व छात्र होने के नाते श्रद्वय कर्मयोगी काकासा को मुझे निकट से देखने व समझने का अवसर मिला है, उनके व्यक्तित्व व कृतित्व की भव्यता के अनुरूप इस ग्रन्थ को तदनुरूप कलेवर व स्तर प्रदान करने एवं सामग्री के संग्रहण, संयोजन और व्यवस्था को समुचित रूप में प्रस्तुत करने का मैंने भरसक प्रयास किया है, इसका मुझे पूर्ण संतोष है एवं पूर्ण विश्वास है कि पूर्व निर्धारित आदर्शो एवं आयोजनाओं के अनुरूप प्रत्य का स्वरूप प्रकट हुआ है, इसका नीर-क्षीर विवेक से सुधीजन ही निर्णय कर सकेंगे ।
अन्त में इस ग्रन्थ के मनीषी लेखकों के प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मेरे अनुरोध पर सद्भावनापूर्वक हार्दिक सहयोग प्रदान कर इस ग्रन्थ को यह स्वरूप प्रदान करने में हर संभव प्रयास किया।
महावीर जयंति ६१२२
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-डॉ० देव कोठारी (सम्पादक)
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