________________ 100 वीं ओली पूर्ण की थी / वि.सं.2060 में मुंबई में दीपक ज्योति टॉवर-कालाचौकी में चातुर्मास किया था / उस चातुर्मास में उनके प्रथम शिष्य मु.श्री उदयरत्नविजयजी म. ने वर्धमान तप की 100 ओली पूर्ण की थी, उस समय पू. गणिवर्य श्री रत्नसेनविजयजी म. ने अपनी 100 वीं पुस्तक 'बीसवीं सदी के महान् योगी' का आलेखन किया था / गणि में से पंन्यास पदारुढ हए पूज्यश्री को कोकण शत्रुजय थोना में वि.सं.2067 गु.पोष वदी-1, दि. 20-1-2011 के शुभदिन आचार्य पद प्रदान किया गया, तब से वे पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसूरीश्वरजी म.सा. के नाम से प्रख्यात हुए। पूज्यश्री आचार्य पदारुढ का नौवां वर्ष चल रहा है / आचार्य पदारुढ होने के बाद पूज्यश्री ने दो चातुर्मास अपनी जन्मभूमि बाली एवं बडी दीक्षा भूमि घाणेराव (राज.) में किए / दो चातुर्मास गुजरात प्रांत में शत्रुजय महातीर्थपालीताणा में किए / दो चातुर्मास महाराष्ट में भायंदर व नासिक में किए / दो चातुर्मास कर्णाटक प्रांत की राजधानी बेंगलोर व मैसूर में किए / इस प्रकार चार राज्यों में हजारों किमी. का विहार कर अनेक नगरों में अनेकविध धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करवाकर पूज्यश्री ने दक्षिण भारत के तामिलनाडू प्रांत में दि. 13 मार्च 2019 के शुभ दिन प्रवेश किया है। तामिलनाडु प्रांत में उनका सर्व प्रथम चातुर्मास कोयम्बत्तुर की धन्यधरा पर होने जा रहा है। वि.सं. 2075 तथा ई.सन् 2019 के वर्ष में चातुर्मास प्रारंभ के बाद अषाढ वद-14 दि. 31-7-2019 के शुभ दिन पूज्यश्री द्वारा आलेखित कर्मग्रंथ भाग-1 की तृतीय आवृत्ति का प्रकाशन हो रहा है / पूज्यश्री की भाषा अत्यंत ही सरल व सुबोध होने से हिन्दी भाषी क्षेत्र में उनके साहित्य का अच्छा प्रचार-प्रसार हो रहा है / प्रभु से यही प्रार्थना है कि पूज्यश्री चिरायु बने और उनके वरद हस्तों से जिनशासन की सुंदर आराधनाएं संपन्न होती रहे / निवेदक दिव्य संदेश प्रकाशक ट्रस्ट , मुंबई कर्मग्रंथ (भाग-1)