Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
(
३२ )
६१ ६२-६७
६७-६६
६८
६६-७४
७०
७२
३
अघाति प्रकृतियाँ कौन-कौनसी हैं गाथा १५, १६, १७
पुण्य और पाप प्रकृतियाँ कौन-सी हैं और क्यों ? गाथा १८
अपरावर्तमान प्रकृतियाँ अपरावर्तमान शब्द की व्याख्या मिथ्यात्व प्रकृति को अपरावर्तमान मानने का कारण गाथा १६
परावर्तमान की व्याख्या परावर्तमान प्रकृतियाँ विपाक का लक्षण और भेद कर्म प्रकृतियों के ध्र वबंधी आदि भेदों का विवरण क्षेत्रविपाकी प्रकृतियाँ
आनुपूर्वी नामकर्म को क्षेत्रविपाकी मानने का कारण गाथा २०
जीवविपाकी और भवविपाकी प्रकृतियाँ गाथा २१
पुद्गल विपाकी प्रकृतियाँ कौन-कौन और क्यों ? रति, अरति मोहनीय का विपाक सम्बन्धी स्पष्टीकरण गति नामकर्म भवविपाकी क्यों नहीं आनुपूर्वी नामकर्म विषयक स्पष्टीकरण कर्म प्रकृतियों के क्षेत्रविपाकी आदि भेदों का यन्त्र
बंध के भेद और उनका स्वरूप गाथा २२
मूल प्रकृतिबंध के बंधस्थान और उनमें भूयस्कर आदि बंधों का विवेचन मूल प्रकृतियों में बंधस्थानों की संख्या
७४-७६
७६-८८
७६
८०
८२
८८-१४
८६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org