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प्रकाशकीय
श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के प्रकाशन विभाग द्वारा धार्मिक सत्साहित्य प्रकाशन की अनवरत् परम्परा में प्रायः दुर्लभ साहित्य का पुनर्प्रकाशन अबाध रूप से जारी रखते हुए पं. (डा.) पन्नालाल जैन, साहित्याचार्य जी ने करणानुयोग दीपक को जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड और त्रिलोकसार, तिलोयपण्णत्ती एवं राजवार्तिक के आध नर से क्रमशः प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय भाग के रूप में अपनी विद्वत्पूर्ण लेखनी से सहज भावों में उकेरा है। पं. (डा.) पन्नालाल जैन जी द्वारा गम्भीर मनन से परिपूर्ण समर्पित वर्धा के साथ प्रस्तुत पुस्तक धर्मप्रिय बन्धुओं के लिए स्वाध्यात्मक है।
महासभा का प्रकाशन विभाग पं. (डा.) पन्नालाल जैन जी का सादर आभारी है, जिनकी कृतियाँ सफल और विद्वतजनों द्वारा सदैव स्वागत योग्य व संग्रहणीय हैं।
हम महासभा की ओर से श्रीमती विमला देवी व श्री पारसमल जी, कलकत्ता के हार्दिक आभारी हैं जिनके आर्थिक सहयोग से इस प्रकार की कालजयी रचनाओं का पुनर्प्रकाशन सम्भव हो सका है।
आशा है विद्वानों की विद्वत्ता, श्रेष्ठिवर्ग की दानशीलता और कर्मठ कार्यकर्त्ताओं से महासभा व प्रकाशन विभाग सुदृढ़ होता रहेगा और प्रकाशन विभाग जिनवाणी की यथाशक्ति सेवा करता रहेगा ।
निर्मल कुमार सेठी
अध्यक्ष
श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (धर्म संरक्षिणी) महासभा
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