Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 6
________________ आद्य वक्तव्य करणानुयोग दीपक के प्रथम व द्वितीय भाग पाठकों के हाथों में पहुंच चुके हैं। यह उसका तृतीय भाग है। इसमें त्रिलोकसार, तिलोयप्रणाली, राजवार्तिक तथा स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा के अन्तर्गत लोकानुप्रेक्षा के आधार पर कुछ उपयोगी विषयों का संकलन किया गया है। समन्तभद्र स्वामी ने करणानुयोग का लक्षण इस प्रकार लिखा है लोकालोक - विभक्ते - र्युगपरिवृत्तेश्चतुर्गतीनाञ्च । आदर्शमिव तथामतिरवैति करणानुयोगञ्च ।। अर्थात् सम्यग्ज्ञानी जीव लोक, अलोक के विभाग, युगपरिवर्तन तथा चारों गतियों का दर्पण के समान स्पष्ट वर्णन करने वाले करणानुयोग को जानता है। पहले त्रिलोकसार शास्त्री प्रथम खण्ड का पाठ्य ग्रन्थ था अतः उसके पठन-पाठन की व्यवस्था विद्यालयों में थी परन्तु विषय की दुरूहता के कारण अब वह पाठ्य ग्रन्थ नहीं है इसलिए लोकविषयक ज्ञान से छात्र वञ्चित रहने लगे हैं। राजवार्तिक का ३, ४ अध्याय भी पाठ्यक्रम में नहीं है। स्वाध्यायी मनुष्य तथा महिलाएँ ही इनका स्वाध्याय कर तविषयक ज्ञान प्राप्त करते हैं। श्री १०५ विशुद्धमती माताजी ने त्रिलोकसार, सिद्धा तसार दीपक और तिलोयपण्णत्ती की विस्तृत हिन्दी टीका कर स्वाध्यायी

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