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महानुभावों का बड़ा उपकार किया है। आज का छात्र वर्ग भी इस ओर अपनी अभिरुचि जागृत करे, इस उद्देश्य से इन ग्रन्थों में से कुछ आवश्यक प्रकरण प्रश्नोत्तर की शैली में मैंने संकलित किये थे। उनकी प्रेसकापी मैंने करणानुयोग के विशिष्ट ज्ञाता पं० जवाहरलालजी शास्त्री, भीण्डर और आर्यिका श्री १०५ विशुद्धमती माताजी के पास भेजी थी। माताजी ने संकलित प्रश्नोत्तरी को परिवर्द्धित और स्पष्ट करने का प्रशस्त कार्य किया है। पं० जवाहरलालजी ने कहीं टिप्पणियाँ देकर प्रश्नोत्तरों को स्पष्ट किया है। इस तरह करणानुयोग दीपक का यह तृतीय भाग सुपरीक्षित होकर पाठकों के हाथों में जा रहा है ।
हमारे स्नेही डॉ० श्री चेतनप्रकाशजी पाटनी, जोधपुर ने इसके निर्दोष एवं सुरुचिपूर्ण प्रकाशन में बहुत श्रम किया है। प्रथम और द्वितीय भाग के समान इस भाग का भी प्रकाशन श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन ( धर्म संरक्षिणी ) महासभा के प्रकाशन विभाग की ओर से हो रहा है ।
जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में सहयोग करने वाले उपर्युक्त सभी महानुभावों के प्रति में आभार और आदरभाव प्रकट करता हूँ ।
श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल
पिसनहारी, जबलपुर
विनीत पन्नालाल जैन (साहित्याचार्य)