Book Title: Jainpad Sangraha 05
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 11
________________ पृष्ट पदसंख्या | पृष्ठ पदसंख्या | ७९ गुण ती माहीवाला क्यो० १९० ३२ रे मन मेरा, तू मेरो क० ८०.९१ समझ भव्य अनमति सो० २१२ ६३ रागद्वेष हकार सागकार० १५१ ९: मुख पावागे यासों मेरा० २२७ ६९ रे मन मूरत वावरे. १६६ / । ५ हो जिनवानी जू तुम० १०. ४७ लक्ष जी आज चट जिन० ११८०/११ हे आतमा देखी दुति० २४, १०० लूम झूम बरसे बदरवा० २४३ १६ हम भरन का जिन० ३६ १९ हरना जी जिनराज मोरी० ४३ ७१ वीतराग मुनिराजा मो० १७१ ।१२६ हो विधिनाकी मोप कहीं० १. | ३२ हो मना जी चारी वानि० ७८ ४ श्रीजिनपूजनको हम आये ८.३२ हो प्रभुजी म्हारो छ ना० ७९ . १८ श्रीजी तारनहारा ये तो ४० ३९ हमकी कछु भय ना रे० ९४. २७ भिवयानी निगानी जिन. १५.४४ हो जो म्हे निशिदिन० ११०. ७६ श्रीजिनवर दरवार० १८१/४६ ह कब देख वे मुनिराई हो ११४. ८१ गरन गही मैं तेरी. १९५ | ५३ हो राज म्हें ती वारी जी १२८ ९७ श्रीजा म्हाने जाणी छौ २३४ १६६ हो चेतन जी ज्ञान करीला० १५९ हता निशिदिन सेऊ. १६० ७ सारट तुम परसाट तैआ० १५ ७६ हो जी म्हारी याही मानू. १८२ २७ सम्यग्ज्ञान विना तेरो ज० ६४. ७८ हमारी पीर तो हरी जी. १८८ २९ मुनियो हो प्रभु आदिजि० ७२० ८३ हो चेतन अभी चेत लै २०० ३९ मुणिल्यो जीव मुजान मी० ९९.८६ हो जिय ज्ञानी रे ये ही. २०८ ४२ मीख तोहि भापतहू या. १०३, ९२ हे देखो भोली वरज्यौ न. २२४ ५५ सुरनरमुनिजनमोहनकी० १३२ / ९२ हो टेवाधिदेव म्हारी० २२५ ५८ सुन करि वानी जिनवर० १४० ५९ सुमरी क्यों ना चन्द जि० १४२ / 32 ज्ञान विन थान न पावागे ८१, ७७ सजनी मिल चाली ये० १८६ | ३६ ज्ञानीथारीरीतरी अचौ० ९..

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