Book Title: Jainpad Sangraha 05
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 15
________________ श्रीवीतरागाय नम पदसंग्रह पंचमभाग। कविवर वुधजनजीकृत पदोंका संग्रह । राग-भैरों (प्रभाती) प्रात भयो सब भविजन मिलिक, जिनवर पूजन आवो ॥ प्रात० ॥ टेक || अशुभ मिटावो पुन्य वढायो, नैननि नींद गमावो ॥ प्रा०॥१॥ तनको धोय धारि उजरे पट, सुभग जलादिक ल्यावो । वीतरागछवि हरखि निरखिक, आगमोक्त गुन गावो । प्रा० ॥२॥ शास्तर सुनो भनो जिनवानी, तप संजम उपजावो । धरि सरधान ' देव गुरु आगम, सात तत्त्व रुचि लावो ॥ प्रातः ॥३॥ दुःखित जनकी दया ल्याय उर, दान चारिविधि द्यावो । राग दोप तजि भजि निज पदको, वुधजन शिवपद पावो ॥ प्रात०॥४॥ (२) “राग-भैरों (प्रभाती) किंकर अरज करत जिन साहिव, मरी ओर निहारो ॥किंकर० ॥ टेक || पतितउधारक दीनदयानिधि, सुन्यौ

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