Book Title: Jainpad Sangraha 05
Author(s): Jain Granth Ratnakar Karyalaya Mumbai
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 80
________________ ( ६६ ) twe ॥ २ ॥ तुम्हींने खूवं भविजनको, बताया भित-रसता है । उसी रसते चले सायर, तुम्हारे बीच बसता है ॥ तिहारी० ॥ ३ ॥ विमुख तुमसों भये जितने, तिते दोर्जेकमें धसता है । मुरीद तेरा सदा बुधजन, आपने हाल मसता है ॥ तिहारी० ॥ ४ ॥ •( १५८) राग - मल्हार । 1 माई आज महामुनि डोलें । मतिवंता गुनवंत काहुसौं, बात कछू नहिं खोलें || माई० ॥ टेक ॥ तू नहिं आई ये घर आये, चरन कमल जल धोलें ॥ माई० ॥ १ ॥ विधिप गाहे असन कराये, निधि वैधि गई अतोलै ॥ माई० ॥ २ | नगर जिमाथा कोइ न रहाया, यौं अचरज कहौं कोलै ॥ माई० ॥ ३ ॥ धन्य मुनीसुर धनि ये दानी, बुधजन इम मुख वोलै ॥ माई० ॥ ४ ॥ (०१५९) राग - सोरठ । हो चेतन जी ज्ञान करौला जी || हो० ॥ टेक ॥ ॥ • विनाशी नित्य निरंजन, नेकन डर न धरौला | होहूं D 1 6 १ ॥ देखन जान स्वभाव अनादी, ताहिन ना विसरों राग दोष अज्ञान धारतां, गति गति विपति भरौला ॥ ॥ २ ॥ पूर्व कर्मका बंध हरौला, जो आपमैं धीर करें १ बहिश्तका रास्ता - स्वर्गका मार्ग । २ नरकमें । ३ शिष्य । ४ च ५ करोगे ।

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