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॥ २ ॥ तुम्हींने खूवं भविजनको, बताया भित-रसता है । उसी रसते चले सायर, तुम्हारे बीच बसता है ॥ तिहारी० ॥ ३ ॥ विमुख तुमसों भये जितने, तिते दोर्जेकमें धसता है । मुरीद तेरा सदा बुधजन, आपने हाल मसता है ॥ तिहारी० ॥ ४ ॥
•( १५८)
राग - मल्हार ।
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माई आज महामुनि डोलें । मतिवंता गुनवंत काहुसौं, बात कछू नहिं खोलें || माई० ॥ टेक ॥ तू नहिं आई ये घर आये, चरन कमल जल धोलें ॥ माई० ॥ १ ॥ विधिप
गाहे असन कराये, निधि वैधि गई अतोलै ॥ माई० ॥ २ | नगर जिमाथा कोइ न रहाया, यौं अचरज कहौं कोलै ॥ माई० ॥ ३ ॥ धन्य मुनीसुर धनि ये दानी, बुधजन इम मुख वोलै ॥ माई० ॥ ४ ॥
(०१५९)
राग - सोरठ ।
हो चेतन जी ज्ञान करौला जी || हो० ॥ टेक ॥ ॥
• विनाशी नित्य निरंजन, नेकन डर न धरौला | होहूं
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१ ॥ देखन जान स्वभाव अनादी, ताहिन ना विसरों
राग दोष अज्ञान धारतां, गति गति विपति भरौला ॥
॥ २ ॥ पूर्व कर्मका बंध हरौला, जो आपमैं धीर करें
१ बहिश्तका रास्ता - स्वर्गका मार्ग । २ नरकमें । ३ शिष्य । ४ च ५ करोगे ।